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________________ ब्राह्मी पुरस्कार (2002) एवं आचार्य भद्रबाहु पुरस्कार (2003) समर्पित - - आचार्यश्री विद्यानन्दजी मुनिराज के 79 वें 'पीयूष पर्व महोत्सव' के सुअवसर पर दिनांक 22 अप्रैल 2003 को राजधानी नई दिल्ली के लिबर्टी छबिगृह के भव्य सभागार में आयोजित समारोह में 'त्रिलोक उच्चस्तरीय अध्ययन एवं अनुसंधान संस्थान' की ओर से प्रवर्तित 'ब्राह्मी पुरस्कार' प्रो. ओ. पी. अग्रवाल, लखनऊ वालों को गरिमापूर्वक समर्पित किया गया। पूज्य आचार्यश्री के जन्मदिन के प्रसंग में देशभर से श्रद्धालुजन बड़ी संख्या में उपस्थित थे, और इस विशाल जनसमुदाय की उपस्थिति में समारोह के मुख्य अतिथि केन्द्रीय श्रम मंत्री डॉ. साहिब सिंह वर्मा ने कहा कि भगवान् महावीर के सिद्धांत आज भी सभी के लिए बहुत उपयोगी हैं। हब सबको उनका पालन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जैन दर्शन से उनके जीवन में भी बहुत परिवर्तन हुआ है। आचार्यश्री को भावभीनी विनयांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने कहा कि इनका मार्गदर्शन एवं आशीर्वचन देश और समाज को लंबे समय तक मिलता रहे। इनका दृष्टिकोण बहुत विशाल है। समारोह में भारतीय संस्कृति, पुरातत्व, कला, साहित्य एवं ज्ञान विज्ञान के लिए प्रवर्तित 'ब्राह्मी पुरस्कार' प्राचीन पाण्डुलिपियों एवं पुरातात्विक सामग्री के संरक्षण एवं संवर्द्धन के अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ प्रो. ओमप्रकाश जी अग्रवाल को माननीय साहिब सिंहजी वर्मा ने बहुमानपूर्वक समर्पित किया। पुरस्कार की सम्मान राशि एक लाख रूपए का ड्राफ्ट प्रवर्तक संस्थान के मैनेजिंग ट्रस्टी श्री सी.पी. कोठारी ने डॉ. अग्रवाल जी को समर्पित किया। सम्मान ग्रहण करते हुए डॉ. ओ. पी. अग्रवाल ने कहा कि हमारे देश में जैन धर्म की विशाल धरोहर है, लेकिन लोगों को इसकी जानकारी नहीं है। इस बारे में बहुत कुछ करने की आवश्यकता है और मैं तन मन धन से दिशा में समर्पित होकर कार्य करूँगा। उन्होंने 'ब्राह्मी पुरस्कार' दिए जाने के लिए पुरस्कार समिति और चयन समिति के सदस्यों का आभार व्यक्त किया और पूज्य आचार्यश्री के श्रीचरणों में अपनी सहधर्मिणी के साथ कृतज्ञ विनयांजलि समर्पित की। - इसी समारोह में कुन्दकुन्द भारती न्यास द्वारा प्राच्य जैन ज्योतिष, प्रतिष्ठा विधि, वास्तु शास्त्र तत्वज्ञान एवं संहिताविधि आदि के क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाले विद्वान् को सम्मानित करने के लिए इसी वर्ष से प्रवर्तित 'आचार्य भद्रबाहु पुरस्कार' जैन प्रतिष्ठा विधि वास्तु शास्त्र एवं ज्योतिष शास्त्र के विख्यात विद्वान् पं. बाहुबलि पार्श्वनाथ उपाये, बेलगाम (कर्नाटक) को बहुमानपूर्वक समर्पित किया गया। प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह आदि का समर्पण माननीय साहिब सिंह वर्माजी ने किया, तथा एक लाख रूपए की धनराशि का ड्राफ्ट कुन्दकुन्द भारती के न्यासी श्री सतीश जैन (एस.सी.जे.) ने समर्पित किया। - I आचार्यश्री ने अपने आशीवर्धन में कहा कि अत्यंत प्राचीनकाल से भारत धर्मप्रधान देश रहा है, सभी शासकों ने सभी धर्मों के संतों एवं विद्वानों को आदर दिया है। यदि देश को बचाना है, आगे लाना है और महान् बनाना है तो विद्वानों का सम्मान करना ही होगा भारतीय संस्कृति में जाति महत्वपूर्ण नहीं रही यहाँ नीति श्रेष्ठ रही है भगवान् महावीर ने भी अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह एवं ब्रह्मचर्य जैसे पाँच महान् सिद्धांत विश्व को दिए। यदि इन पर अमल किया जाए तो सारे विवाद खत्म हो जाएं। राम और भरत दोनों राजकार्य से निर्लेप रहे, आज के शासकों के लिए यह एक आदर्श उदाहरण है। 126 समारोह के अध्यक्ष नवभारत टाइम्स के प्रकाशक श्री पुनीत जैन ने अपनी विनयांजलि में कहा कि आचार्यश्री ज्ञान के आगार हैं। इनका क्षणिक सान्निध्य भी हर किसी को पुलकित कर देता है जिस प्रकार पुरानी पीढ़ी को इनका सान्निध्य लंबे समय तक मिला है, उसी प्रकार युवा पीढ़ी को भी इनका मार्गदर्शन एवं आशीर्वचन दीर्घकाल तक मिलते रहना चाहिए। Jain Education International - For Private & Personal Use Only अर्हत् वचन, 15 (3) 2003 www.jainelibrary.org
SR No.526559
Book TitleArhat Vachan 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size12 MB
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