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गये स्वप्न जो अब किंचित साकार रूप ले रहे हैं एवं डॉ. जोशी के विचारों में एक साम्य है। यदि डॉ. जोशी समग्र भारतीय संस्कृति के गौरव में अभिवृद्धि हेतु सतत सचेष्ट हैं तो श्री कासलीवालजी भी उसी के एक अंग - जैन संस्कृति में निहित विज्ञान को प्रकाश में लाने हेतु प्रयत्नशील हैं। यह प्रयास भी अन्ततोगत्वा भारतीयता के गौरव को ही बढ़ायेगा। किन्तु यदि शीर्ष राजनेता को इस कार्य में अनेक परेशानियों से दो-चार होना पड़ रहा है तो फिर श्री कासलीवालजी के विचार को मूर्त रूप लेने में व्यवधान नहीं आयेगें, यह कैसे सोच लिया जाये। व्यवधान आन्तरिक एवं बाह्य दोनों होते हैं। कभी आर्थिक तो कभी मनोवैज्ञानिक। कभी समग्र सोच के स्तर पर तो कभी प्रक्रियागत किन्तु इन व्यवधानों पर विजय प्राप्त करना जरूरी है। इसे एक अनुष्ठान मानकर आने वाले व्यवधानों से हतोत्साहित न होते हुए लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सतत सचेष्ट होना एवं दायित्व का अहसास कर कर्त्तव्य पथ पर आगे बढ़ना चाहिये। तभी जैन संस्कृति का वैज्ञानिक स्वरूप प्रतिष्ठापित होगा। भारतीय गणित की एक मुख्य धारा जैन गणित एवं पर्यावरण संरक्षण में जैन धर्म की भूमिका तथा जैन आयुर्वेद के अध्ययन के क्षेत्र में कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ ने पर्याप्त प्रगति की है। अर्हत वचन का प्रस्तुत एवं गत अंक जैन गणित की इसी गौरवशाली परम्परा की एक झलक प्रस्तुत करता है। डॉ. जोशी की प्रेरणा के अनुरूप हम सब परम्परा को संरक्षित करते हुए प्रगति की ओर कदम बढ़ाने हेतु संकल्पित हैं। मेटसेट का प्रक्षेपण -
हमने बात 12 सितम्बर से शुरू की है। वह तिथि वाकई बड़ी महत्वपूर्ण है। इसी दिन 12.9.02 को भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने दोपहर 3.57 पर राष्ट्र का 1060 किलो वजनी मौसम उपग्रह मेटसेट भूसमस्थानिक कक्षा में सफलतापूर्वक प्रतिस्थापित कर भारतीय मेघा के वैशिष्ट्य को पुनर्प्रमाणित किया। सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय -
लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण है भारत के सर्वोच्च न्यायालय का 12 सितम्बर का एक निर्णय जिसमें न्यायालय ने भारत सरकार द्वारा NCERT के पाठ्यक्रम में संशोधन कर कतिपय तथाकथित इतिहासज्ञों द्वारा लिखित भारतीय परम्परा को अपमानित करने वाले अंशों को हटाने की सरकार को अनुमति प्रदान की। डॉ. आर.एस. शर्मा द्वारा लिखित एवं NCERT द्वारा प्रकाशित कक्षा 11 की पाठ्य पुस्तक प्राचीन भारत एवं इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त वि.वि. के प्रकाशन धार्मिक बहुलवाद में जैन धर्म के बारे में अनेक अनर्गल बातें लिखी हैं। उनमें से कुछ का उल्लेख डॉ. जोशी ने अपने भाषण में भी किया। इन अंशों को हटाकर समीचीन अंशों को सम्मिलित करने के प्रयासों को वामपंथी विचारधारा के कतिपय इतिहासज्ञों ने भगवाकरण की संज्ञा देकर न्यायालय में जनहित याचिका के माध्यम से रूकवा दिया था। 12 सितम्बर को न्यायालय ने याचिका रद्द कर ऐसे संशोधन परिवर्तन करने की अनुमति दी। न्यायालय ने कहा कि 'सरकार को ऐसी मूल्य आधारित शिक्षा लागू करने का प्रयास करना चाहिये जो सच्चाई, सही रास्ता दिखाने वाली, सहयोग की भावना बढाने वाली, अहिंसा एवं अन्य धर्मों का सम्मान करने की प्रेरणा देने वाली हो।'
हमें विश्वास है कि सर्वोच्च न्यायपीठ की इस आज्ञा का पालन न केवल शासन
अर्हत् वचन, 14 (2 - 3), 2002
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