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________________ वैराशिक आदि त्रैराशिक का अर्थ है 'तीन राशियाँ' अर्थात् 'तीन राशियों से संबंध रखने वाला नियम' । त्रैराशिक के प्रश्न का स्वरूप निम्न प्रकार का होता है - "यदि 'प्र' में 'फ' मिलता है, तो 'इ' में क्या मिलेगा ? यहाँ पर तीन राशियाँ हैं 'प्र' 'फ' तथा 'इ' भारतीय गणितज्ञ 'प्र' को प्रमाण, 'फ' को फल और 'इ' को इच्छा कहते हैं। ये नाम भारतीय गणित के सब ग्रन्थों में मिलते हैं। कभी-कभी इन्हें 'प्रथम', 'द्वितीय' और 'तृतीय' (राशि) भी कहा गया है। सभी गणितज्ञों ने लिखा है कि अर्थात् एक जाति की होती हैं। " . प्रथम और तृतीय राशियाँ सदृश, श्रीधर कहते हैं ' ( त्रैराशिक की) तीन राशियों में से प्रमाण और इच्छा, जो और अन्त की हैं फल राशि, जो अन्य जाति की है, मध्य आदि से भाग देना चाहिये ।' एक जाति की हैं, आदि की है। मध्य और अन्तिम के गुणनफल को उदाहरण 1 यदि एक पल और एक कर्ष चन्दन की लकड़ी 10 पण में प्राप्त होती है तो नौ पल और एक कर्ष ( चन्दन की लकड़ी) कितने में प्राप्त होगी ? यहाँ पर 1 पल और 1 कर्ष (= और 9 पल और एक कर्ष (=9 पल) इच्छा है। इन राशियों को निम्न प्रकार से लिखते हैं - हल 1 पल) प्रमाण है, 10 1 पण फल है, - - भिन्नों का सवर्णन करने पर, हमें यह मिलता है - 21 5 2 4 Jain Education International द्वितीय और तृतीय राशियों को गुणा करने पर और प्रथम राशि से भाग देने पर हमें मिलता है - 37 4 1 10 9 1 1 1 4 2 4 अर्हत् वचन, 14 (23). 2002 5 21 37 4 2 4 21 37 - X 2 5 4 4 For Private & Personal Use Only 25 www.jainelibrary.org
SR No.526554
Book TitleArhat Vachan 2002 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size9 MB
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