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________________ अर्हत्व कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर प्राचीन जैन साहित्य, संस्कृति के संरक्षण एवं सराक बन्धुओं के उत्थान हेतु सतत सचेष्ट परमपूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के भाव से श्रुत संवर्द्धन संस्थान, मेरठ द्वारा अप्रैल 2000 में उपाध्याय ज्ञानसागर श्रुत संवर्द्धन पुरस्कार की स्थापना की गई। पुरस्कार के अन्तर्गत जैन साहित्य, संस्कृति या समाज की सेवा करने वाले व्यक्ति / संस्था को प्रतिवर्ष रु.1,00,000/- की राशि एवं रजत प्रशस्ति पत्र, शाल, श्रीफल से सम्मानित करने का निश्चय किया गया। संक्षिप्त आख्या प्रथम उपाध्याय ज्ञानसागर श्रुत संवर्द्धन पुरस्कार - 2000 समर्पण समारोह, दिल्ली, 6 जनवरी 2002 । हंसकुमार जैन* अर्हत् वचन, 14 (1), 2002 Jain Education International हम मिशन आि साहू रमेशचन्द्रजी जैन को प्रशस्ति प्रदान करते हुए डॉ. सिंघवी एवं एवं श्री निर्मलकुमारजी सेठी पुरस्कार राशि के चेक के साथ ज्ञानपीठ के मानद निदेशक श्री दिनेश मिश्र विधिपूर्वक गठित निर्णायक मंडल की सर्वसम्मत अनुशंसा के आधार पर प्रथम पुरस्कार अनुपलब्ध जैन साहित्य के उत्कृष्ट प्रकाशन कार्य हेतु भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली को देने का निश्चय किया गया। मई 2001 में की गई घोषणा के अनुरूप यह पुरस्कार चिन्मय मिशन आडियोरियम, नई दिल्ली में 6 जनवरी 2002 को पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज के ससंघ मंगल सान्निध्य में भव्यता पूर्वक बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों एवं जैन विद्या के अध्येताओं की उपस्थिति में समर्पित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केन्द्रीय कृषि मंत्री श्री अजितसिंहजी एवं प्रमुख अतिथि प्रख्यात विधिवेत्ता, सांसद डॉ लक्ष्मीमल माननीया पाननीय For Private & Personal Use Only 93 www.jainelibrary.org
SR No.526553
Book TitleArhat Vachan 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size7 MB
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