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________________ ने 25% अंशदान देने की घोषणा की। संगोष्ठी में प्रो. पारसमल अग्रवाल (ओक्लेहोमा- अमेरिका), इंजीनियर श्री अभय जैन (अमेरिका), डॉ. सविता इनामदार (अध्यक्ष - म.प्र. महिला आयोग), सुश्री राधा बहन एवं पुष्पा बहन (कस्तूरबा ग्राम ट्रस्ट, इन्दौर), पं. शिवचरनलाल जैन (अध्यक्ष - तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ), डॉ. फूलचन्द्र जैन 'प्रेमी' (अध्यक्ष - अ. भा. दि. जैन विद्वत् परिषद), प्रो. ए. ए. अब्बासी (पूर्व कुलपति), प्रो. नरेन्द्र धाकड़ (प्राचार्य - होल्कर विज्ञान महाविद्यालय), श्री देवकुमारसिंह कासलीवाल (अध्यक्ष - कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ), श्री प्रदीपकुमारसिंह कासलीवाल (राष्ट्रीय अध्यक्ष - दि. जैन महासमिति), श्री निर्मलकुमार सेठी (राष्ट्रीय अध्यक्ष - दि. जैन महासभा), श्री माणिकचन्द पाटनी (राष्ट्रीय महामंत्री - दि. जैन महासमिति), पद्मश्री बाबूलाल पाटोदी आदि महानुभावों की उपस्थिति एवं उदबोधन विशेष उल्लेखनीय रहे। विद्वत् महासंघ के कार्याध्यक्ष एवं तीर्थकर वाणी के सम्पादक डॉ. शेखरचन्द जैन - अहमदाबाद ने संगोष्ठी की अनुशंसा में अपने हृदयोद्गार प्रस्तुत करते हुए कहा - 1. भगवान महावीर की जन्मभूमि नालन्दा जिले का कुण्डलपुर ही है, इसका सबको मिलकर विकास करना चाहिये। 2. संगोष्ठी में अपेक्षतया कम वक्ताओं को आमंत्रित करना चाहिये जिससे प्रत्येक वक्ता को अधिक समय दिया जा सके। 3. भ्रूण हत्या के सत्र के शोध पत्रों में शोधात्मक सामग्री की न्यूनता थी, किन्तु केन्द्रीय ___ मंत्री श्रीमती सुमित्रा महाजनजी का लेख अत्यन्त गम्भीर एवं शोधपूर्ण था। 4. शेष तीनों सत्र की सामग्री अत्यन्त मूल्यवान, शोधपूर्ण एवं सारगर्भित रही, इससे समागत __विद्वानों के ज्ञान की अभिवृद्धि हुई। 5. संगोष्ठी के आयोजकों ने आवास, भोजन, सभागार, साहित्य आदि की सुन्दर व्यवस्था की है, एतदर्थ वे बधाई के पात्र हैं। 6. महिला संगठन की बहनों का समर्पण विशेषत: श्रीमती सुमन जैन की लगन एवं डॉ. अनुपम जैन का सक्षम, सबल सहयोग एवं मार्गदर्शन स्तुत्य है। इन दोनों की युति ने संगोष्ठी को बहुत ऊँचाइयाँ प्रदान की हैं, सभी को बधाई।। समापन सत्र में कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ एवं विद्वत् महासंघ द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित डॉ. अनिलकुमार जैन - अहमदाबाद की कृति 'जीवन क्या है?' का विमोचन करने के उपरान्त (देखें समीक्षा पृष्ठ 87-88) अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्राचार्य प्रो. धाकड़ ने कहा कि धर्म का अध्ययन ज्ञान के लिये होना चाहिये, केवल पुण्य के लिये नहीं। कण - कण को जोड़ना ही जीवन है एवं यही धर्म है। साथ ही कण - कण को तोड़ना ही मृत्यु। अत: हमें परस्पर लोगों को जोड़ने वाले ज्ञानवर्द्धक कार्यक्रम निरन्तर आयोजित करना चाहिये। आपने सफल संगोष्ठी के आयोजन हेतु बधाई देते हुए समागत समस्त विद्वानों का सम्मान किया एवं अगली संगोष्ठी होल्कर विज्ञान महाविद्यालय के सभागृह में आयोजित करने का प्रस्ताव रखा, जिसका करतल ध्वनि से स्वागत किया गया। * महामंत्री-आयोजन समिति 9/2, स्नेहलतागंज, श्रम शिविर के पीछे, इन्दौर - 452 002 अर्हत् वचन, 14 (1), 2002 91 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526553
Book TitleArhat Vachan 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size7 MB
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