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________________ वर्ष-14, अंक-1, 2002 अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर) प्रकाशकीय वर्ष 14 (2002) का प्रथम अंक किंचित विलम्ब से आपकी सेवा में प्रेषित है। 14 (2) भी शीघ्र ही जून 2002 तक आपके हाथों में पहुँचाने हेतु हम प्रयत्नशील हैं। अर्हत् वचन के सहयोगी सदस्य बनने हेतु हमारे अनुरोध पर उत्साहजनक प्रतिक्रिया हुई। वर्ष 1989 से 2000 तक की अवधि में रु. 1,000/- भेजकर आजीवन सदस्य बने बन्धुओं/बहनों ने रु. 1,100/- अतिरिक्त भेजकर सहयोगी सदस्यता ग्रहण की, एतदर्थ हम उनके प्रति आभार ज्ञापित करते हुए अन्य आजीवन सदस्यों से भी सहयोग का अनुरोध करते हैं। 14 (2) में हम सहयोगी सदस्यों के नाम भी प्रकाशित करेंगे। वर्ष 2001 से आजीवन सदस्यता का प्रावधान समाप्त कर उसे मात्र 10 वर्ष हेतु कर दिया है, किन्तु सहयोगी सदस्यों को पत्रिका आजीवन भेजी जाती रहेगी। कृपया ड्राफ्ट/चेक कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर के नाम देय प्रेषित करें। भगवान महावीर 2600 वाँ जन्म जयंती महोत्सव वर्ष की समापन बेला में हम सबके सम्मुख एक प्रश्न उपस्थित हो गया है। क्या हम इस वर्ष में भगवान महावीर के सन्देशों एवं सिद्धान्तों के व्यापक प्रचार - प्रसार में सफल हो सके? मात्र जन सामान्य में ही क्यों, अकादमिक स्तर पर भी हम जैन धर्म की मूल परम्परा को वांछित गौरव दिलाने में निरन्तर पिछड रहे हैं। जैनत्व के गौरव में अभिवद्धि करने वाली किसी बड़ी शोध/अनुसंधान परियोजना के क्रियान्वयन की जानकारी हमें नहीं मिली। 'प्राकृत एवं जैन अध्ययन' तथा 'जैन पांडुलिपियों की राष्ट्रीय पंजी के निर्माण' की परियोजना से सम्बद्ध उपसमितियों की वर्ष में अनेक बैठकें हुईं किन्तु अनुशसित परियोजनाओं में से किसी को भी शासकीय अनुदान अद्यतन प्राप्त न होने से वे प्रारम्भ न हो सकी और उनका समयबद्ध कार्यक्रम गम्भीर रूप से प्रभावित हुआ है। व सुविज्ञ सूत्रों के अनुसार कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर द्वारा प्रेषित तीनों परियोजनायें सम्बद्ध उपसमितियों में सम्मिलित विशेषज्ञों द्वारा अनशंसित हई हैं। 1. Decoding, Editing and Translation of Siri Bhuvalaya of Kumudendu. 2. Development of Mathematical Thoughts in Jainism. 3. Catalouging of Jaina Manuscripts in M.P. Maharashtra Region. प्रथम दो परियोजनायें 'प्राकृत एवं जैन अध्ययन' वर्ग एवं तीसरी 'जैन पांडुलिपियों की राष्ट्रीय पंजी के निर्माण' वर्ग में अनुशंसित हुई हैं। ज्ञानपीठ में सिरिभूवलय के डिकोडिंग की परियोजना तो 1 अप्रैल 2001 से प्रारम्भ की जा चुकी है, जिसका कार्य प्रगति पर है। शेष 2 पर भी प्रारम्भिक तैयारियाँ पूर्ण की जा चुकी हैं। एवं उन्हें प्रस्तावित प्रारूप के अनुरूप प्रारम्भ करना है। हमारा भारत सरकार से साग्रह अर्हत् वचन, 14 (1), 2002 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526553
Book TitleArhat Vachan 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size7 MB
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