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द्रव्यानुयोग में से करणानुयोग एवं द्रव्यानुयोग में प्रचुर मात्रा में गणितीय सामग्री निहित है। इनमें गणितीय सामग्री की इतनी प्रचुरता है कि पं. टोडरमल (1740- 67 ई.) ने तो यहाँ तक लिखा है कि बिना गणितीय ज्ञान के इन ग्रन्थों को भली प्रकार समझना संभव नहीं है एवं इसी उद्देश्य से उन्होंने अपनी टीका में स्वतंत्र अर्थ संदृष्टि अधिकार का सृजन भी किया । अत्यन्त प्राचीन काल में भी स्वतंत्र पूर्णत: गणितीय ग्रन्थों का सृजन किया गया था। परियम्मसुत्तं, सिद्धभूपद्धति, वृहद्धारा परिकर्म शीर्षक तीन गणितीय ग्रन्थों के उल्लेख हमें क्रमश: धवला, उत्तरपुराण एवं त्रिलोकसार में मिलते हैं। प्राकृत एवं अर्द्धमागधी के गद्य एवं पद्य मय ग्रन्थों के उद्धरण भी प्राचीन ग्रन्थों में प्रचुरता से उपलब्ध हैं। वक्षाली हस्तलिपि एवं 'फी संकलित इल- अदद जैनिस्फ' के जैन ग्रन्थ होने की संभावना से पूर्णत: इनकार नहीं किया जा सकता।
संक्षिप्तत: गणित का जैन साहित्य में विशिष्ट स्थान है। जैनों का अद्वितीय कर्म सिद्धान्त पूर्णत: गणितीय है। गणित के वैशिष्ट्यों को दृष्टिगत कर ही हमनें जैन गणित पर अर्हत् वचन के 2 अंक समर्पित करने का निश्चय किया। 14 (1) आपके हाथों में है एवं 14 ( 2 ) हम शीघ्र ही आपके पास पहुँचायेंगे जिसमें जैन गणित के क्षेत्र में नवीन प्रकाशनों, अब तक सम्पन्न कार्य की सूचनाओं के साथ ही कतिपय नितान्त मौलिक आलेख भी प्राप्त होंगे। प्रस्तुत अंक में संकलित लेखों पर सुधी पाठकों की प्रतिक्रियायें सादर आमंत्रित हैं।
हम प्रस्तुत अंक के लेखकों, सम्पादक मंडल एवं निदेशक मंडल के माननीय सदस्यों, दि. जैन उदासीन आश्रम ट्रस्ट के सभी सम्मानित ट्रस्टीगणों के प्रति आभार ज्ञापित करते हैं जिनके सतत संरक्षण एवं सहयोग का ही प्रतिफल यह अंक है। होल्कर स्वशासी विज्ञान महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. नरेन्द्र धाकड़ तथा गणित विभाग के सभी प्राध्यापकों का परोक्ष सहयोग भी अविस्मरणीय है। उसके बिना इस दायित्व का निर्वाह असंभव है। आज के अर्थ प्रधान युग में शोध पत्रिकाओं का संचालन लगभग असंभव है किन्तु माननीय श्री देवकुमारसिंह कासलीवाल एवं श्री अजितकुमारसिंह कासलीवाल की वैयक्तिक अभिरूचि एवं निर्विकल्प समर्थन से ही अर्हत् वचन आप तक पहुँचाना संभव हो पा रहा है। अंक की सभी न्यूनताओं एवं त्रुटियों हेतु मैं स्वयं अपना दायित्व स्वीकार करते हुए आशा करता हूँ कि आपका स्नेहपूर्ण सहयोग हमें निरन्तर प्राप्त होता रहेगा।
31.3.2002
प्रकाशन स्थल
: इन्दौर प्रकाशन अवधि : त्रैमासिक
मुद्रक एवं प्रकाशक : देवकुमारसिंह कासलीवाल
राष्ट्रीयता
: भारतीय
पता
: 580, महात्मा गांधी मार्ग, इन्दौर - 452001 : डॉ. अनुपम जैन
मानद सम्पादक
राष्ट्रीयता
: भारतीय
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अर्हत् वचन के सम्बन्ध में तथ्य सम्बन्धी घोषणा
( फार्म - 4, नियम 8 )
पता
स्वामित्व
: 'ज्ञानछाया', डी 14, सुदामा नगर, इन्दौर-452009
: कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, 584, महात्मा गांधी मार्ग, इन्दौर-452001
मुद्रण व्यवस्था
: सुगन ग्राफिक्स, यूजी 18, सिटी प्लाजा, म. गां. मार्ग, इन्दौर
मैं देवकुमारसिंह कासलीवाल एतद् द्वारा घोषणा करता हूँ कि मेरी अधिकतम जानकारी एवं विश्वास के अनुसार उपरोक्त विवरण सत्य है ।
31.3.2002
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डॉ. अनुपम जैन
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देवकुमारसिंह कासलीवाल अध्यक्ष- कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर
अर्हत् वचन, 14 (1), 2002
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