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________________ नष्ट होने के कारण यह बीमारी होती है। इसी प्रकार पश्चयामी स्मृति हानि (retrograde amnesia) भी होती है। लघु अवधि स्मृति के जो भी कारण हों इसमें तंत्रिका के स्पंदन या आवेगों (impulse) का लगातार छोटे बंद तंत्रिका परिपथ पर चलना भी हो सकता है। तंत्रिका-संगमों के अनुभागों (potentials) के परिवर्तन भी इसमें कारण हो सकते हों। इन सभी को EEG (Electroencephologram) के अभिलेखों में देखा जाय। इसी प्रकार तत्सम्बन्धी और सिद्धान्त प्रस्तुत किये गये हैं। प्रायोगिक प्रतिबंधन और दीर्घ-अवधि स्मृति (Experimental Conditioning and Long Term Memory) : दीर्घ अवधि वाली स्मृति, सुदृढ़ होने के पश्चात्, क्या लघु अवधि वाली स्मृति की तरह विद्युतीय रहती है? विद्युत आघात (electroconvulsive shocks), विक्षोभ (concussion), या शामक, संज्ञाहारिक, वेदनाहारी (aneasthesia), यदि इतने अधिक गहरे हों कि विद्युतीय नीरवता (silence) हो जाये और दीर्घकाल स्मृति अक्षुण्ण बनी रहे। अत: स्थायी स्मृति विवृत्तीय आवेग (impluses) या विद्युता से उत्पन्न अन्य तंत्रिका निषेक की विद्युतीय अवस्था नहीं है। वस्तुत: यह मान्यता है कि इसमें संरचनात्मक morphological) आकृति विज्ञान अथवा रासायनिक परिवर्तन तंत्रिका - निषेकों में हो जाता है। इसका कारण यह हो सकता है कि (neurons) पर आघात या तंत्रिका - संगमी दनादन (synaptic bombardment) तंत्रिका जोड़ से दागने से स्थायी (durable) परिवर्तन हो जाता है, जिससे तांत्रिक (neuronal) परिपथ पश्च क्रिया के प्रति अधिक सुग्राही (susceptible) या सुप्रभाव्य हो जाता है। स्मृति सुदृढता (consolidation) पर जो प्रयोग किये गये वे प्रशिक्षण या संस्कार (conditioning) से संबंधित हैं। ये प्रयोग ईवान पेत्रोविच पावलोव (Ivan Petrovich Pavlov) द्वारा मेडिकल अकादमी, सेट पीटर्सबर्ग, रूस में किये गये जिस पर उन्हें 1904 में नोबेल पुरस्कार मिला। उनके प्रयोग कुत्तों के मुंह में लार आने से संबन्धित थे। जब कुत्ता रोटी भोजन करता है तो उसके मुँह से लार टपकती है। यह स्वयमेव होने वाली प्रतिवर्त क्रिया (reflex action) है। इसमें नियमितता और तात्कालिकता एक सहज तंत्रिका परिपथ प्रतिवर्ती चाप (reflux arc) पर आधारित रहती है। जिनके द्वारा आवेश यात्रा करते हैं। इसमें केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र शामिल होता है। (उद्दीपन, जैसे सुई चुभन, द्वारा आवेगों के समूह अनेक संवेदी तंत्रिका तंतुओं द्वारा मेरू रज्जु में जाते हैं, जहाँ से वे दूसरे तंत्रिका तंतुओं को भेज दिये जाते हैं। तथा आवेग प्रेरक तंत्रिका तन्तुओं के एक समूह में नीचे जाते हैं जो पेशियों को सक्रिय करते हैं, जिनके सिकुड़ने से पांव सुई चुभन से उठा लिया जाता है।) यदि दूर से भी रोटी दिखाई जाये तो भी उस प्रतिबन्धित कुत्ते की लार टपकने लगती है। यह आन्तरिक प्रतिवर्त (innate reflex) नहीं है तथा कुत्ते (puppy) में नहीं होता है। कुत्ता लार टकपाने को देख - देख कर कहीं से सीख जाता है। वह रोटी की आशा (expection) में लार नहीं टपकाता, किन्तु वह सीखता है। पहले घंटी बजाकर दरवाजा खोलकर खाना लाया जाता है। खाने को देखकर लार (saliva) टपकना, फिर घंटी को सुनकर भी लार का निकलना। यहाँ घंटी की आवाज को प्रतिबंधित उद्दीपक (conditioned stimulus) कहा जाता है और भोजन (food) को अप्रतिबंधित उद्दीपक (unconditinal stimulus) कहते हैं। इस प्रकार के प्रतिबन्धन (cpnditioning) को चिरसम्मत प्रतिबंधन (classical conditioning) कहते हैं। वेदनादायक उद्दीपक (stimulus) भी इसी प्रकार वेदना देते हैं। कुत्ते को प्रतिबंधित (conditioned) कर लार टपकाने हेतु अप्रतिबंधित उद्दीपक के स्थान पर अप्रतिबंधित उद्दीपक (uncondit stimulus) को विस्थापित कर प्रतिबंधित उदीदपक (conditioned stimulus) द्वारा पूंछ हिलाना (wagging) आदि कराना और प्रकाश, आवाज, स्पर्श, पिन, बिजली धक्का द्वारा अनेक प्रक्रियाओं द्वारा 84 अर्हत् वचन, 14 (1), 2002 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526553
Book TitleArhat Vachan 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size7 MB
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