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________________ तथा कम्प्यूटर विज्ञान। न तो मनोविज्ञान, न ही अकेली कम्प्यूटर की पुरानी संरचना इसमें सफल हो सकी थी क्योंकि उसमें मस्तिष्क की गहरी जानकारी का उपयोग नहीं किया गया था। मस्तिष्क का निर्माण 100,000,00 लाख न्यूरानों द्वारा होता है जिसमें सूक्ष्मतम विद्युत तरंगें संचारित होती हैं और इन न्यूरानों के बीच सूचना संचार में रसायन विज्ञान की भूमिका रहती है। इसके सभी भाग न तो अलग-अलग रूप से, न ही अलग - अलग समय में, वरन् सामग्र रूप में तत्काल युगपत कार्य करते पाये गये हैं। जैसे सत्व की समग्र कर्मवर्गणाएं आसवित कर्म वर्गणाओं वाले असंख्यात समय प्रबद्धों से आच्छादित हो नवीन निर्जरा तत्काल देती है, वैसा ही ज्ञानावरणीय प्रकृति का कार्य सम्पादन मस्तिष्क में होता पाया गया है। मस्तिष्क की संरचना में दर्शनावरणीय, ज्ञानावरणीय एवं मोहनीय प्रकृति की कर्मवर्गणाओं की अहम् भूमिका होती है, शेष की गौण भूमिकाएं होती हैं। अत: मस्तिष्क गत निषेकों या न्यूरानों के कार्य को समग्र रूप से कार्यरत पेटर्न में समझना उचित होगा। यही पेटर्न समझा सकेगा कि हम क्यों स्नेह करते हैं या हँसते हैं। अभी तक इस रहस्यमय गुत्थी को आधुनिक मस्तिष्क विज्ञान सुलझा नहीं सका प्रयोगशालाओं के मस्तिष्क के प्रतिरूप में (न्यूरल नेटवर्को में) एक दर्जन से लेकर कई सौ कृत्रिम न्यूरान होते हैं जिन्हें रूढ़िगत डिजिटल कम्प्यूटर द्वारा संचालित किया जाता है। वैसे एक अकेला न्यूरान मस्तिष्क में 10,000 अन्य न्यूरानों से संयुक्त होता है, ताकि सभी न्यूरान एक दूसरे को संकेत प्रेषण करते रहें। प्रतिकृति में भी यही संचार व्यवस्था लागू की जाती है। किन्तु ये प्रतिकृतियाँ खिलौने तक ही सीमित रह जाती हैं। अब शोद्यार्थी ऐसे तंत्रिकाय जालसंरचनाएँ निर्मित कर रहे हैं जो यह प्रदर्शित कर सके कि मस्तिष्क किस प्रकार सामान्य गंधों को पहिचानता है। कुछ ऐसे प्रतिरूप तैयार कर रहे हैं जो यह दिखा सके कि किसी लम्बे समय से खोये मित्र की स्मृति जगा सके। किस प्रकार आसवित संकेत आंखों से प्राप्त होकर दृष्ट होते हैं, और किस प्रकार आघात लगने में न्यूरानों का समूह पुनर्व्यवस्थित रूप से संयुक्त होकर कार्य करने लगते हैं। एक न्यरान को कम्प्युटर स्विच की अपेक्षा संकेत प्रेषण में दस लाख गुना अधिक समय लगता है किन्तु मस्तिष्क जाने पहचाने चेहरे को एक सेकेण्ड में पहिचान लेता है। यह इसलिए कि कम्प्यूटर कदम दर कदम चलता है, जब कि मस्तिष्क के न्यूरान्स एक साथ सभी युगपत रूप से समस्या से निपटने जुट जाते हैं। इस प्रकार चिन्तन के क्षेत्र में शोधार्थियों को कम्प्यूटर एवं तंत्रिका - जीव विज्ञान के मेल से मस्तिष्क सम्बन्धी कार्यप्रणाली का आभास होता जा रहा है। किन्तु कषाय का क्षेत्र अभी भी उनकी समझ के परे हैं। कषाय में न केवल दर्शन मोह वरन् चारित्रमोह सम्बन्धी कार्माणवर्गणाओं की भूमिका होती है। यह मोह प्रकृति स्वयं अनेक उपप्रकृतियों वाली कार्माण वर्गणाओं के रूप में होते हए नगर सभा को निषेकों रूप में चर्चित करते हैं। क्रोध, मान, माया, लोभ तथा हास्य, रति, अरति, शोक, भय जुगुप्सा 76 Jain Education International अर्हत् वचन, 14(1), 2002 www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.526553
Book TitleArhat Vachan 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size7 MB
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