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________________ अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर वर्ष - 14, अंक - 1, 2002, 75-86 आधुनिकतम मस्तिष्क सम्बन्धी खोजें जैन कर्म सिद्धान्त के परिप्रेक्ष्य में - डॉ. (अ.) प्रभा जैन एवं प्रो. एल.सी. जैन* सारांश विगत सदी में भौतिक शास्त्र, गणित तथा जीव विज्ञान में हुए आविष्कार एवं खोज से हमने प्रकृति के अनेक रहस्यों को उद्घाटित किया है। साथ ही दक्षिण भारत में विशेषकर षटखण्डागम एवं कषायप्राभत ग्रंथों से संबंधित टीकाएँ एवं सार रूप ग्रंथ गोम्मटसार, लब्धिसार की गणितीय टीकाएँ हिन्दी भाषा में अनुवादित होकर सामने लायी गयी हैं। इनकी कर्म सिद्धांत संबंधी सामग्री के परिप्रेक्ष्य में हम विज्ञान की आधुनिक मस्तिष्क सम्बन्धी खोजों पर लगे प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास करेंगे। शताब्दियों तक विचारकों ने मस्तिष्क के संबंध में चिंतन किया कि वह किस प्रकार चेहरों को, गन्धों को, आवाजों को, पहचानता है और किस प्रकार वह सुदूरवर्ती स्मृतियों को संजोकर सामने बुलाता है तथा अन्तःप्रज्ञा युक्त छलांगें मारकर परिणामों पर पहुंच जाता है। यूनान, चीन आदि देशों ने विगत 2000 वर्षों में जो कुछ पाया और खोजा, उससे कहीं बहुत अधिक आश्चर्यजनक उपलब्धि दक्षिण भारत में हो चुकी थी तथा गणित द्वारा आगे विकसित की गई थी। आज मस्तिष्क विज्ञान की नवीन खोजें जिन्हें कम्प्यूटर के नवीन प्रोग्रामों द्वारा क्रियाशील कृत्रिम मस्तिष्क निषेकों (Cells) द्वारा सहायता मिली है, हमें एक नये सिरे से मस्तिष्क की जानकारी बढ़ाने कि प्रेरणा दे रही हैं। सापेक्षता का आइंस्टाइन का सिद्धान्त एवं मैक्स प्लांक का क्वान्टम सिद्धान्त तंत्रिका विज्ञान (neuro - Science) में अंशदान देते हुए यह समझाने का प्रयास प्रारंभ कर रहे हैं कि किस प्रकार मस्तिष्क सुदूर स्मृतियों के परदे दूर कर चेहरों, सुगन्धों और अन्य जटिल रूपों को पहचान सकता है जबकि उत्कृष्ट क्षमता युक्त कम्प्यूटर भी लड़खड़ा जाते हैं। जहां कम्प्यूटर किसी व्यवस्था के अनुसार, विधि विधानानुसार कदम गणना करते चलते हैं, वह रूप मस्तिष्क का नहीं है। हमारा मस्तिष्क अब न्यूरानों (मस्तिष्क - कर्म-वर्गणाओं) का अति गहन रूप से परस्पर संयुक्त मधुमक्खी के छत्तों जैसा निरंतर कार्यरत अंतर्जालि (internet) है, जो लगातार एक दूसरे को विद्युत - रासायनिक संकेत आगे पीछे भेजता हआ, प्रत्येक नवीन अनुभव के साथ संचार पथों को बदलता चला जाता है। ऐसे व्यस्त बाजार के मध्य जो न्यूरानों की विशाल जालरचना है, उसमें ही हमारे विचार, स्मृतियाँ और अवग्रह, ईहा, धारणादि उत्पन्न होते हैं। मस्तिष्क वैज्ञानिकों को आशा है कि यह नवीन सिद्धान्त मिर्गी या वृद्धावस्था रोग (epilepsy and alzheimer's disease) पर नियंत्रण पाने में सहायक सिद्ध हो सकेगा। मस्तिष्क के नये प्रतिरूप (model) को दो भिन्न विज्ञानों के मेल से क्रांति पूर्ण बनाया जा सकता है- तंत्रिकागत जीव विज्ञान (neuro-biology) * संचालिका-श्री ब्राह्मी सुन्दरी प्रस्थाश्रम, 21 कंचन विहार, विजयनगर, जबलपुर। ** निदेशक- आचार्य श्री विद्यासागर शोध संस्थान, दीक्षा ज्वेलर्स के ऊपर, 554 सराफा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526553
Book TitleArhat Vachan 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size7 MB
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