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लेकिन उनका विस्तृत गणित भारत में पहली बार महावीर ने अपने ग.सा.सं. में दिया। यहाँ उनके कुछ नियम प्रस्तुत किये जा रहे हैं।
(1) संख्या एक को अनेक एकांश भिन्नों में निरूपित करना -
यदि 1 को । एकांश भिन्नों में निरूपित किया जाये तो हरों (denominators) को प्राप्त करने के अनेक नियम हैं। ग.सा.सं., (III, 75, पृ. 52) में एक नियम इस प्रकार है -
रूपाद्यास्त्रिगुणिता हरा क्रमश: द्विद्वित्र्यंशाभ्यस्तावादिम चरमौ। 1 से आरम्भ होकर क्रमश: उत्तरोत्तर 3 से गुणा करो। इस प्रकार प्राप्त (1) पदों के प्रथम को 2 से तथा अन्तिम (rth) को 2/3 से गुणा करने पर अभीष्ट हर प्राप्त हो जाते हैं। अर्थात्
1 1 1 1 = 1+ 2 + 2 + .... 1273036-7 ....... ..... (41)
हूबहू यही सूत्र नारायण की गणित कौमूदी (XII, 2) में भी है, केवल शब्दों का परिवर्तन मात्र है।
1
(II) 1/N को एकांश भिन्नों में बदलना -
इसके लिये ग.सा.सं. (III, 78, पृ. 54) के व्यापक सूत्र का उपयोग करके हमें निम्नलिखित नियम मिलता है -
+
-
+
-+ ................ +
N
N(N+ 1) * (N+ 1)(N+2) * (N+2)(N+3)
..........
(42)
(42) (N+r-2) (N+r-1) (N+T-1)
इसमें यदि N = 1 रखा जाये तो हमें एक साधारण निरूपण या जोड़ मिल जायेगा -
+
-
+
1 = 1.2 * 2.3* ...... (r-1)*
......................... (43) __ जो गणितकौमुदी (XII,1) में भी है। यदि हरों का मान बहुत तेजी से बढ़ाना हो तो निम्नलिखित सरल नियम को बारबार लगाना चाहिये -
%3D
+
........ (44) N (N+1) N(N+1) (111) किसी भी भिन्न को अनेक एकांश भिन्नों में बदलना -
ग.सा.सं., (III, 80, पृ. 54) में एक बहुत ही सरल तथा उपयोगी सूत्र है जिसका रूप आधुनिक गणितीय संकेतों में इस प्रकार है -
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अर्हत् वचन, 14 (1), 2002
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