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किये हैं। ग.सा.सं., (VII, 21, पृ. 185) में 2a आयाम ( लम्बाई) तथा 2b व्यास (चौड़ाई) वाले आयतवृत्त (ellipse) के निम्नलिखित व्यावहारिक सूत्र हैं :
'आयाम में आधा व्यास जोड़कर दुगुना करने से आयतवृत्त की परिधि प्राप्त होती है । व्यास के चौथाई भाग को परिधि से गुणा करने से क्षेत्रफल मिलता है । "
व्यासार्धतो द्विगुणित आयतवृत्तस्य परिधिरायामः । विष्कम्भचतुर्भाग: परिवेषहतो भवेत्सारम् ॥ 21 ॥
अर्थात्, परिधि, p = 2(2a + b)
|तथा क्षेत्रफल A =
p.2b/4
आयतवृत्त को दोहरा (double) चाप क्षेत्र मानें तो 2a = c, b = hp = 2s. तब सूत्र ( 38 ) से ( 35 ), तथा ( 39 ) से ( 36 ) प्राप्त हो जायेगा। इस प्रकार हयाशी के अनुमान या विचार की पुष्टि होती है। सम्भव है कि नारायण महावीर के सूत्रों से भलीभांति परिचित और प्रभावित हों।
लेकिन एक बात विचारणीय है। ऊपर दिये गये सूत्रों का संबंध क्या उन प्राचीन सूत्रों से भी है जो किसी न किसी रूप और सन्दर्भ में यहाँ वहाँ पाये जाते हैं। जैसे क्षेत्रफल के लिये एक बहुत ही व्यापक प्राचीन सूत्र है क्षेत्रफल = (घेरा ) x (चौड़ाई) / 4
-
(40)
दिलचस्प बात यह है कि वृत्त और वर्ग दोनों के लिये ( 40 ) सही है। महावीर ने उसे दीर्घवृत्त के लिये लगाया तो नारायण ने दोहरे चापखंड के लिये। सूत्र ( 37 ) को तो महावीर ने स्वयं (ग.सा.सं., VII, 43, पृ. 190 ) चापखंड का सीधे व्यावहारिक क्षेत्रफल निकालने के लिये दिया है। वास्तव में सूत्र ( 37 ) का दिग्दर्शन हमें विश्व की अनेक प्राचीन सभ्यताओं में होता है तथा श्रीधर (750 ई. लगभग) ने भी उसे एक परिवर्धित रूप में दिया है। सूत्र ( 35 ) या ( 38 ) पर भी इस लेख के लेखक ने कुछ नवीन खोज की है। इस पूरे विषय की सामग्री लेखक के कुछ अन्य लेखों में छपने वाली है। गणित के इतिहास को पढ़ने और उसमें शोध करने से हमें प्राचीन काल की सभ्यताओं के एक दूसरे के सम्पर्क तथा आदान प्रदान की झलकियाँ मिलती हैं।
है ।
(38) (39)
4. एकांश भिन्नें (Unit Fractions) -
अन्त में एकांश भिन्नों के विषय में कुछ चर्चा करेंगे जिसमें महावीराचार्य का विशेष योगदान है। सामान्यतया साधारण (simple) भिन्नें ही विभिन्न देशों के प्राचीन गणित में पाई जाती हैं। लेकिन प्राचीन जैन आगमों में जटिल भिन्नों का भी प्रयोग देखने को मिलता है। जैसा सूर्यप्रज्ञप्ति (सूत्र 18 ) में ' चत्तारि जोयणाई अद्धबावण्णं च तेसीइसयभागे" के अनुसार मान 4 + (51-)/183 योजन है।
इस प्रकार जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति (सूत्र 22 ) में एक संख्या ( भिन्न सहित ) 1892 2
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अर्हत् वचन, 14 (1), 2002
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मिस्र देश के एक अति प्राचीन ग्रंथ में एकांश भिन्नों की एक सारणी मिलती है।
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