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में (empirically) इस प्रकार समझा जा सकता है। माना कि समबहुभुज के परिवृत्त (circumcircle) की त्रिज्या R और परिधि C है। जैसे जैसे भुजाओं की संख्या बढ़ेगी, वैसे वैसे बहुभुज परिवृत्त की तरफ अग्रसर होगा। अर्थात् यदि s का मान C/2 होता है तो अन्तत: (limit में जब n+ ) A का मान TRP (यानी 3R2 या C2/12, जहाँ C = 6R) होना चाहिये। इसलिये हम A को निम्नलिखित रूप में ले सकते हैं - ___A = us2 (1 +
................ (29) जहाँ अज्ञात स्थिरांक ३ व ४ को निकालना है। अब इसमें लिमिट (n,०) लेने
या.
C2/12 = u(C/2)2
u= 1/3 अत: (29) अब,
A = (s2/3).((1 + होगा। फिर, n के समी मानों के लिये,
A <IR = C2141 <C/12 .. इसलिये (30) में धन (+) चिह्न न होकर ऋण [-] होगा। अत:
A = (s2/3).(1 - अन्त में v को निकालने के लिये हम वर्ग के लिये (32) को लगा सकते हैं, जिससे -
a = (4a2/3).(1 -४)
v=1 जिसे (32) में रखने से हमें सूत्र 6 मिल जाता है। (2) पैशाचिक गणित का एक प्रश्न
महावीर के क्षेत्रगणित विषयक अध्याय का सबसे बड़ा भाग पैशाचिक प्रश्नों पर है। अर्थात् वे जटिल प्रश्न जिनके हल करने के लिये दानवीय शक्ति चाहिये। उनमें से एक छोटा सा उदाहरण यहाँ प्रस्तुत है। प्रश्न - ऐसे दो समद्विबाहु त्रिभुज बताओं जिनके क्षेत्रफल और रज्जु (perimeter) समान हों और सभी भुजायें पूर्णांकों में हों। (ग.सा.सं. VII, 138, पृ. 220). मूल श्लोक इस प्रकार है -
द्विसमत्रिभुजक्षेत्रद्वयं तयोः क्षेत्रयो:समं गणितम्।
रज्जू समे तयो:स्यात् को बाहुः का भवेद्भूमिः। 138॥ आधुनिक गणितीय भाषा में प्रश्न का मतलब है कि हमें निम्नलिखित समीकरणों का पूर्णाकों में हल चाहिये - 2a + b = 2x + y ..
........................ (33) b2 (4a2. b) =y2 (4x2 - Y2)..... जहाँ a,a : x,x भुजाएँ और by भूमियाँ (bases) हैं।
इस प्रश्न हल करने के लिये महावीर ने स्वयं एक व्यापक सूत्र दिया है (ग.सा.सं., VIE, 13 . 219) जिसमें त्रिभुजों की रज्जु और क्षेत्रफल किसी भी अनुपात अर्हत् वचन, 14 (1), 2002
(34)
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