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________________ p = a + 2 + a3 + 4 = d + d2 + d3 + da (5) उपर्युक्त दोनों प्रकार के बहुभुजों का क्षेत्रफल निकालने के लिये महावीर का व्यावहारिक सूत्र इस प्रकार है। - "अर्धरज्जु के वर्ग के तृतीय अंश को भुजाओं की संख्या (n) से भाग दो। उसमें भुजाओं की संख्या से एक कम संख्या द्वारा गुणा करने से बहुभुज का क्षेत्रफल प्राप्त होता है। इस फल का चौथाई भाग श्लिष्ट वृत्तों के अन्तरनिहित वक्रीय बहुभुज का क्षेत्रफल होगा।" V+ V2 अर्थात् बहुभुज तथा वक्रीय बहुभुज P1P2 V2 रज्ज्वर्धकृतित्र्यंशो बाहुविभक्तो निरेकबाहुगुणः । सर्वेषामश्रवतां फलं हि, बिम्बान्तरे चतुर्थांशः ॥ f3 62 और भुजाओं की संख्या n है । त्रिभुज (n = 3) के उदाहरण में महावीर ने भुजाओं के मान 5, 7 और 6 दिये हैं। (ग.सा.सं. VII, 41). अत: व्यद्र २ Jain Education International V3 s = (a + a2 + a3 + तथा सूत्र ( 6 ) का रूप होगा A = अतः पूर्ववत् (6) और (7) से A = 25/2, तथा B = 25/8. Vo का क्षेत्रफल A = .. P3 का क्षेत्रफल B = A/4 - (ग. सा. सं., VII, 39, पृ. 189) (s2/3). (n-1)/n (n2 - n). a2/12 जहाँ s = p/2, (अर्धरज्जु) इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि महावीर के मूल सूत्र में भुजाओं या वृत्तों का समान होना जरूरी नहीं है। फिर भी n को 3 से अधिक लेने पर विवेचन में ( व्यापक रूप सूत्र को लेने पर) कुछ व्यावहारिक कठिनाइयाँ हैं। अतः आगे हम केवल समानवृत्तों से बने और घिरे समबहुभुजों (regular polygons) का ही विचार करेंगे। तब na 2 V, V2 = a1 = 5 =1+2 V2V3 = a2 = 6 = 2 +3 V3V1 = a3 = 7 = 13 +1 . p = 18, s = 9, r = 3, 2 = 2, 3 = 4. सूत्र ( 6 ) से, A = 18; तथा सूत्र (7) से से घिरे वक्रीय त्रिभुज अन्य उदाहरण (VII, B = 9/2, जो कि श्लिष्ट वृत्तों ( रेखांकित ) का क्षेत्रफल है। एक 42) में महावीर ने भुजायें न देकर तीनों वृत्तों के व्यास 6, 5, 4 दिये हैं। अतः d1 = 6 = 211, d2 = 5 = 2r2, d3 = 4 = 213. यहां सूत्र ( 5 ) से p = d + d2 + d3 15 = 2s. E @ .an)/2 = For Private & Personal Use Only (9) (10) अर्हत् वचन, 14 (1), 2002 www.jainelibrary.org
SR No.526553
Book TitleArhat Vachan 2002 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2002
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size7 MB
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