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________________ पुस्तक समीक्षा वर्द्धमान पञ्चांग : उपयोगी प्रकाशन पुस्तक : वर्द्धमान पञ्चांग सम्पादक : पं. महेशकुमार जैन शास्त्री, गणितकर्ता प्रकाशक : संस्कृत ज्योतिष कम्प्यूटर एकेडमी, सर्वार्थसिद्धि, 3171-ई, सुदामा नगर, इन्दौर - 452001 (म.प्र.) साईज : 28 x 21 से.मी., मूल्य : रु. 20/-, अंक - 3, पृष्ठ - 70 + 25, सन् 2000 - 2001 समीक्षक : डॉ. महेन्द्रकुमार जैन "मनुज', शोधाधिकारी-कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर जैन वाङ्मय में ज्योतिष विद्या बहुत समृद्ध है। जैन ज्योतिष और जैन परम्परा से अन्य ज्योतिषाचार्य भी भलीभांति परिचित थे। प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रन्थ 'मानसागरी' के कर्ता ने ग्रन्थ के प्रारम्भ में भगवान आदिनाथ का स्मरण करना आवश्यक समझा, जिसे जन्मपत्री के प्रारम्भ में लिखने का निर्देश दिया गया है - श्रीआदिनाथ प्रमुखा जिनेश: श्रीपुण्डरीक प्रमुखा गणेशाः। सूर्यादिखेटर्भयुताश्च भावा: शिवाय सन्तु प्रकट प्रभावाः ।। मा.सा. 2 ।। जैनज्योतिष का समुचित उपयोग और व्यवहार नहीं हो पा रहा है। वर्द्धमान पञ्चांग जैन ज्योतिष में एक अग्र-कदम है। इस पंचांग में तिथि, वार और नक्षत्र उज्जैन के सूर्योदय के समय पर संगणित हैं। मुहूर्त - साधन और मुहूर्त चक्रों से यह पंचांग उपयोगी हो गया है। इसमें जैन व्रत, पौं, पंचकल्याणक तिथियों का समावेश यथा - तिथि किया गया है। मात्र वीर शासन जयन्ती की तिथि पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। चर सारणी, अक्षांस सारणी, वेतान्तर सारणी, लग्नसारणी, अवकहडा चक्रम और जन्मपत्री बनाने की सरल विधि का समावेश इसमें किया गया है, जो ज्योतिष में थोड़ी सी भी दखल रखने वालों को पत्रिका निर्माण में बहुत उपयोगी है। प्रतिदिन के शुभ-अशुभ योग और आवश्यक मुहूर्त, चौघड़िया, वर्षफल आदि का भी समावेश किया गया है। यह महत्त्वपूर्ण और उपयोगी प्रयास है। अन्य पंचांगों की परम्परा से कुछ हटकर इसके अंतिम भाग में 'रत्न ज्योतिष' को सम्मिलित कर लिया गया है, इसमें किस ग्रह की उपशांति के लिये किस लग्न वाले को कौन सा रत्न, किस धातु में, किस अंगुली में धारण करना चाहिये, रत्न की मात्रा, सहायक रत्न, विरोधी रत्न और धारण करने की विधि निर्दिष्ट है। इसके पृष्ठ 31 पर सूचना प्रकाशित है कि 'आगामी सन् 2002 से 2011 तक का वर्द्धमान पञ्चांग का गणित पूर्ण हो चुका है और विक्रम सम्वत् 2101 से 2200 तक के पञ्चांग निर्माण की तैयारी जैन ज्योतिष पर साफ्टवेयर संस्कृत - ज्योतिष - कम्प्यूटर एकेडमी के एक और अभिनव प्रयास के रूप में जैन ज्योतिष, ब्रह्म सिद्धान्त, सूर्य सिद्धान्त, मकरन्द, ग्रहलाघव और केतकी आधारित अर्थात् प्रसिद्ध पाँच सिद्धान्तों में से किसी भी एक सिद्धान्त या सभी सिद्धान्तों के तथा जैन सिद्धान्त का पञ्चांग बनाने के लिये शीघ्र ही आगामी महावीर जयन्ती तक एक साफ्टवेयर प्रस्तुत किया जा रहा है। प्रोग्रामिंग का कार्य पूर्ण हो चुका है, मात्र इसका संशोधन चल रहा है। यह साफ्टवेयर विक्रयार्थ उपलब्ध रहेगा। . पं. महेशकुमार जैन सम्पादक-वर्द्धमान पंचांग, डीमापुर-797 112 फोन: 03862 -30232 अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000
SR No.526548
Book TitleArhat Vachan 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size6 MB
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