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________________ पुगलिनामदेव SwaramRRite पुस्तक समीक्षा युग निर्माता भगवान ऋषभदेव पुस्तक : युग निर्माता भगवान ऋषभदेव लेखक : वैज्ञानिक धर्माचार्य श्री कनकनंदीजी गरु प्रकाशक : धर्म दर्शन विज्ञान शोध संस्थान द्वितीय संस्करण : वर्ष 1999, पृष्ठ- 18 + 193, मूल्य-41/समीक्षक : आ. ऋद्धिश्रीमाताजी, संघस्थ प्रज्ञायोगी आचार्य श्री गुप्तिनंदीजी महाराज सृष्टि का शाश्वत् नियम है परिवर्तन। सभ्यता, संस्कृति, मानव समाज सभी को इस परिवर्तन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। जो मान्यतायें, परम्परायें कभी उपयोगी, समयानुकूल जान पड़तीं थीं, उनमें भी समय की गति को देखते हुऐ परिवर्तन करना पड़ता है। एक व्यवस्था, एक नियम, एक कानून प्रत्येक काल में, प्रत्येक समय में उपयोगी सिद्ध हो यह जरूरी नहीं है। समय काल के अनुसार उन परिस्थितियों में बदलाव, हेरफेर होता रहे तो परिवार में, समाज में, देश में, विश्व में सुव्यवस्था बनी रहती है। यदि परिस्थिति, परम्पराओं में समय के अनुसार बदलाव, हेरफेर नहीं होता है तो परिवार, समाज, राजनीति, अर्थनीति, धर्मनीति आदि व्यवस्थाओं में रूढिवादिता, तानाशाही, भोगलिप्सा, अनैतिकता की विकृतियाँ पनपने लगती हैं। इसीलिए समय की गति के साथ-साथ परिस्थिति, परम्पराओं में बदलाव होना आवश्यक है और इस बदलाव को कोई सामान्य पुरुष नहीं कर सकता इस बदलाव को करने के लिए विशिष्ट महापुरुषों का अवतरण इस बसुन्धरा पर होता है और उनकी प्रखर, ओजस्वी ऋतम्भरा प्रज्ञा के द्वारा एक नये युग का सूत्रपात, नयी सभ्यता संस्कृति को जन्म मिलता है। इस नये युग का प्रारंभ युग के आदि में जन्में भगवान आदिनाथ के द्वारा हुआ। भोग प्रधान भोगभूमि के बाद जब कर्मभूमि का आगमन हुआ तब कर्म से अनभिज्ञ मानव समाज को कर्म प्रधान जीवन यापन करने के लिए असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य, शिल्पकला का प्रशिक्षण देकर एक नये युग के निर्माण का सूत्रपात किया इसीलिए उपकृत संपूर्ण प्रजा उन्हें आदिब्रह्मा, आदि सृष्टि कर्ता, युग निर्माता, युगादि पुरुष, आदिनाथ आदि नामों से पुकारती थी। इस कृति के लेखक आचार्य रत्न श्री कनकनंदी जी गुरुदेव ने इस कृति में सत्य तथ्य एवं प्रमाणिक सूत्रों के द्वारा यह सिद्ध किया है कि इस युग के प्रथम निर्माता, आदि शिक्षक भगवान आदिनाथ ही थे। प्रस्तुत कृति में उन्हीं भगवान ऋषभदेव के जीवन एवं उनके द्वारा प्रतिपादित जीवन शैली का सरल, सुबोध एवं प्रवाहपूर्ण शैली में विस्तृत विवरण दिया गया है। कृति भारतीय संस्कृति के प्रत्येक जिज्ञासु के लिये पठनीय एवं संग्रहणीय है। परम पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से मनाये जा रहे भगवान ऋषभदेव अन्तर्राष्ट्रीय निर्वाण महामहोत्सव वर्ष में भगवान ऋषभदेव के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के प्रचार-प्रसार में, अपने ज्ञान का सदुपयोग करें। अहेत् वचन, अक्टूबर 2000 89
SR No.526548
Book TitleArhat Vachan 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size6 MB
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