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________________ आज अनेक देश की सरकारें प्रयासरत हैं। भगवान ऋषभदेव की धर्मनीति ने पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति आदि सभी में जीव मानकर इन सभी के प्राणों की रक्षा का उपदेश करोड़ों वर्ष पूर्व दिया था। उनका अपरिग्रह का सिद्धान्त गरीबी दूर करने में आधारभूत है क्योंकि हर देश में कतिपय स्वार्थी हाथों में संग्रह वृत्ति होने के कारण ही बाकी सामान्य जनता को गरीबी की समस्या से जूझना पड़ता है। मेरी गुरु एवं भारतीय जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी, गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने वर्तमान में संसार भर के लिये इन सिद्धान्तों की आवश्यकता को महसूस किया इसीलिये उन्होंने भगवान ऋषभदेव के नाम एवं उनके सर्वोदयी सिद्धान्तों को जन-जन में और संसार के कण-कण में पहुँचाने का महान लक्ष्य बनाया है। इसके लिये उन्होंने राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कई कार्यक्रम आयोजित करने की प्रेरणा दी है। इस विश्व शांति शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिये उन्होंने मुझे यहाँ भेजा है, उनकी यह मंगल प्रेरणा है कि विश्व की ज्वलंत समस्याओं का यदि कोई हल है तो वह है 'आपसी सौहार्द' तथा 'जिओ और जीने दो' का अमर सिद्धान्त। भगवान महावीर जो कि इस युग में जैनधर्म के अन्तिम एवं 24वें तीर्थंकर हैं, उन्होंने भी 2600 वर्ष पूर्व इन्हीं सिद्धान्तों को विश्व के सम्मुख रखा था। अंत में, मैं इस अनूठी परिकल्पना के संयोजन को मूर्त रूप देने वाले सम्मेलन के महासचिव श्री बाबा जैन को सम्पूर्ण भारतीय जैन समाज की ओर से हार्दिक बधाई जिन्होंने इस जिम्मेदारी का सफलतापर्वक निर्वहन करके दुनिया भर के धर्माचार्यों को एक मंच पर लाने का यह पुरुषार्थ किया है और उनके नाम के माध्यम से विश्व के कोने-कोने में शांति का सन्देश पहुँचाने का यह सराहनीय प्रयास किया है। एक उच्च कोटि के उद्देश्य की प्राप्ति में आधार बनकर बाबा जैन ने जैनसमाज के मस्तक को गौरवान्वित कर दिया है। विश्व भर के समस्त धर्माचार्यों द्वारा चार दिनों तक जो बहमल्य विचार प्रस्तत किये गये हैं, उनका सार जब हम अपनी-अपनी मातृभूमि पर अपने लोगों के बीच में क्रियान्वित करेंगे तभी इस शिखर सम्मेलन की सार्थकता सिद्ध हो पायेगी। सम्पूर्ण विश्व में शांति हो, सुभिक्षता हो, मैत्री हो, समन्वय हो, यही मेरी भगवान ऋषभदेव से प्रार्थना * अध्यक्ष - दि. जैन त्रिलोक शोध संस्थान, जम्बूद्वीप - हस्तिनापुर (मेरठ) 250 404 जैन विद्या का पठनीय षट्मासिक JISAMAİJARI JINAMANJARI Editor - S.A. Bhuvanendra Kumar Periodicity - Bi-annual (April & October) Publisher - Brahmi Society, Canada - U.S.A. Contact - Dr. S.A. Bhuvanendra Kumar 4665, Moccasin Trail, MISSISSAUGA, ONTARIO, Canada 14z2w5 86 अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000
SR No.526548
Book TitleArhat Vachan 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size6 MB
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