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शब्दावली तीन भाषाओं में (हिन्दी, अंग्रेजी और बंगला) कंठस्थ किये हुए रहता है। यहाँ आने वाले पर्यटकों को वह बताता है कि - "इस गुफा के अन्दर बड़ी भारी गुफा है, एक दरवाजा है जो बंद है, इसमें राजा जरासंध का सोने का भण्डार रखा हआ है, बाहर ये जो शिलालेख लिखा हुआ है, जो इस लेख को पढ़ लेगा वही दरवाजा खोल सकता है। विध्वंसक बादशाह औरंगजेब यहाँ आया था , उसने इस खिड़की में तोप रखकर सोन भण्डार के इस दरवाजे को तोप से ध्वस्त करने का प्रयास किया था किन्तु तोप से मात्र थोड़ी सी किरिंच ही टूटी, तोप के गोले का अमुक स्थान पर काला निशान अभी भी है।" इत्यादि। वास्तविकता क्या है - राजगृह की इन गुफाओं का सर्वेक्षण करने लेखक नौ बार वहाँ गया, मार्गदर्शक की रटी रटाई शब्दावली तो मैंने कई बार सुनी थी। फुरसत के क्षणों में हमने एक बार उसका निर्धारित शुल्क उसे पुनः देकर उससे पूछा कि आप जो रहस्य बताते हो इसकी वास्तविकता क्या है? उसने हमें उसी बिन्दु पर ले जाकर बताया कि देखिये, वस्तुत: यहाँ अन्दर दरवाजा होने के कोई चिन्ह नहीं हैं। ये जो द्वार के ऊपरी भाग जैसा इस दरार के कारण दिख रहा है, इस दरार को ध्यान से देखें तो यह आगे जाकर विशाल शिला में विलुप्त हो गई है। हमने औरंगजेब की तोप के निशान के विषय में पूछा तो उस गाइड ने दरार के पास से टूटे हुए थोड़े से पत्थर के स्थान को बताया। उसने बताया कि यहाँ किसी तोप आदि का निशान नहीं है, इस स्थान पर बंगाली पर्यटक श्रद्धावश मोमबत्ती जलाते हैं, इस कारण से यहाँ काला पड़ गया है। हमने वहाँ उंगली से घिस कर देखा तो उंगली में कालिख लग गया। हमें स्पष्ट हो गया कि इस गुफा के अन्दर की ओर एक और गुफा, उसमें स्वर्ण भण्डार की मौजदगी, तोप का निशान आदि ये सब मात्र पर्यटकों को आकर्षित करने की कपोल कल्पनाएँ हो सकती हैं। दूसरी गुफा
ऊपर वर्णित गुफा से लगभग 50 फीट उत्तर में इसके समानान्तर कुछ नीचाई में एक और भग्न गफा है। यह भी पूर्वाभिमुख है, इसकी लम्बाई 22.5' एवं चौडाई 17 फीट है। ऊपर का हिस्सा तथा आगे की भित्ति, चट्टानों का ऊपरी भाग पूर्णतया भग्न है। इस कारण इस गुफा में ऊपर खुला आसमान है। इसका मुख्य द्वार आग्नेय कोण में उत्तराभिमुख है।
जैन मूर्ति एवं स्थापत्य की दृष्टि से यह गुफा अति महत्व की है। इसकी पूर्वी और उत्तरी अन्तरभित्तियों में जैन तीर्थंकरों की मर्तियाँ उत्कीर्णित हैं। इन सपरिकर भित्ति मूर्तियों में जैन प्रतिमा विज्ञान की अनेक स्थापनाएँ छुपी हुई हैं, जो अब तक विश्लेषित नहीं हुई हैं। इस गुफा की पूर्वी दीवार में दो कायोत्सर्ग मुद्रा में तथा चार ध्यान मुद्रा में जिन बिम्ब उकरित हैं (चित्र संख्या 4)। दो कायोत्सर्ग भित्ति प्रतिमाएँ
गुफा के द्वार की बायीं ओर अन्त: पूर्वी शिलाभित्ति में सपरिकर पाँच तीर्थंकर प्रतिमाएँ निर्मापित हैं। उनमें भी (दर्शक के) बाएँ की दो प्रतिमाएँ कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं। दोनों के पादपीठ के रूप में कमल उकेरे गये हैं। प्रत्येक के दोनों पार्यों में छोटे आकार में एक - एक चैवरधारी, चँवरधारियों के ऊपर एक - एक गगनचारी देव, साधारण प्रभावल, प्रभावल के ऊपर
अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000