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________________ रत्न प्राप्त हुआ। अर्थात् मुनि संघ ने मुनि वैरदेव को आचार्य स्थापित किया। गुफा में एक और लेख अंकित है जो इस प्रकार है - ___ "श्रीमद्वीर देवशासनाम्बरावभासनसहस्रकर" भगवान् महावीर के शासन रूपी आकाश को प्रकाशित करने वाला सूर्य। उक्त अभिलेख के निकट एक छोटी नग्न मूर्ति का नीचे का भाग है, जो नि:सन्देह किसी जैन तीर्थंकर की मूर्ति का है। समय - यदि इस किंवदन्ति पर विश्वास किया जाये कि जरासंध ने आसपास की रियासतों और राज्यों से लाकर इस गुफा में धन एकत्र किया था, तो इसका समय तीर्थंकर नेमिनाथ के समय का ठहरता है, उस समय नारायण कृष्ण के प्रतिनारायण जरासंध थे। इस गुफा के निर्माण और शैली के अनुसार पुराविदों ने इसका निर्माण (शैशुनाग-नन्द युग 600 से 326 ई. पूर्व) 5वीं शती ईस्वी पूर्व माना है। कुछ विद्वानों ने इस गुफा को मौर्यवंश से सम्बद्ध (325 - 184 ईस्वी पूर्व) बताया है। इसमें जो दो पंक्ति का लेख है उसकी लिपि का परीक्षण करके इस लेख को चौथी शती का माना गया है, लेकिन इसमें छोटे- छोटे अन्य लेख हैं उनकी लिपि नि:सन्देह अत्यन्त प्राचीन है। कई लेखों को तो अब तक पढ़ा नहीं जा सका है। आर्द्रिस बनर्जी ने लिखा है कि सोनभद्र गुहा में यद्यपि गुप्तकालीन लेख हैं, पर इस गुफा का निर्माण गुप्तकाल के पहले ही हुआ होगा। सर्वतोभद्र प्रतिमा इस गुफा में सन् 1975 तक एक सर्वतोभद्र प्रतिमा अर्थात् चारों ओर जिनांकित प्रतिमा स्थित थी। (चित्र संख्या 2) इसकी उँचाई लगभग चार फुट है। इस सर्वतोभद्रिका में चारों ओर आदि के चार तीर्थकर - ऋषभनाथ, अजितनाथ, संभवनाथ और अभिनन्दनाथ निर्मापित हैं (चित्र संख्या 3)। इनमें कायोत्सर्गस्थ कमलासन के नीचे बीच में धर्मचक्र, चक्र के दोनों ओर तीर्थंकर तथा चिन्ह युग्म रूप में अंकित है। क्रमश: अनुकुलाभिमुख दो वृषभ, अनुकुलाभिमुख दो हाथी, दो घोड़े और दो बन्दर अलग - अलग प्रतिमाओं के नीचे उत्कीर्णित हैं। चरणों के पास दोनों पार्यों में दो चॅवरधारी, दोनों पार्यों में और कर्णों के समतल में दो गगनचर. ऊपर छत्रत्रय, छत्रत्रय के ऊपर दोनों ओर पुष्पवृष्टि करते दो हाथ शिल्पित हैं। भामण्डल लुप्त होकर वहाँ अशोक वृक्ष के पत्र गुच्छ दोनों ओर लटक रहे शिल्पांकित हैं। चारों मूर्तियों में चिन्हों की भिन्नता के अतिरिक्त पूर्ण शिल्पांकन में समानता है। केवल ऋषभनाथ की जटाएँ स्कंधों तक लम्बित दर्शाई गई हैं, यह भिन्नता है। वर्तमान स्थिति - यह चतुर्मुख प्रतिमा 1975 तक इस सोनभद्र गुफा में थी (चित्र संख्या - 2)। बाद में इसे नालन्दा पुरातत्त्व संग्रहालय ले जाया गया और वहाँ संग्रहालय परिसर के लॉन में इसे 13 - 14 वर्ष तक रखे रहा गया। वर्तमान में यह मूर्ति नालन्दा संग्रहालय में विधिवत् प्रदर्शित है। समय - इसके अंकन व पाषाण परीक्षणादि से इसका समय विक्रम की आठवीं शताब्दी का माना गया है। पर्यटकों को क्या बताया जाता है - पुरातत्त्व विभाग से अनुमत व प्रशिक्षित गाइड निश्चित अर्हत् वचन, अक्टूबर 2000 18
SR No.526548
Book TitleArhat Vachan 2000 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size6 MB
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