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________________ मत-अभिमत 'अर्हत् वचन' शोध परक उत्कृष्ट पत्रिका है। आपका सम्पादकीय सामयिक सन्दर्भो पर प्रशंसनीय है। अभी 21वीं शताब्दी के लिये पूरा एक वर्ष बाकी है। मैं आपके इस निष्कर्ष से सहमत हूँ। श्री ऋषभदेव - महावीर महा महोत्सव का सुझाव भी अत्यन्त व्यवहारिक है। 9.1.2000 लालचन्द जैन 'राकेश सेवानिवृत्त प्राचार्य, नेहरू चौक, गली नं. 4, गंजबासोदा (विदिशा) सहस्राब्दी संबंधी आपका आलेख साहसिक और सत्य परक है। इस बार की पाठकीय प्रतिक्रियाएँ काफी तीखी हैं। आलोचना आसान है। सृजन में समय एवं शक्ति लगती है, फिर भी सच्ची समालोचना भ्रम निवारक ही होती हैं, परन्तु यह तथ्य परक होनी चाहिये। विद्वान पाठक श्री सूरजमलजी जैन ने कई मूलभूत मुद्दे उठाये हैं, परन्तु बिना किसी विवेचना के समस्त लेखों को जिस तरह से खींचतान, तोड - मरोड़, अतार्किक सिद्ध कर दिया है, वह अत्यन्त दुखद 10.1.2000 - अजित जैन 'जलज' वीर मार्ग, ककरवाहा, टीकमगढ़ अर्हत् वचन का अंक मिला। प्रसन्नता हुई। अर्हत् वचन के लेख असाधारण तथा गंभीर हैं, यही इसकी विशेषता है। अर्हत् वचन में प्रकाशित समाचारों से प्रतीत होता है कि जैन संस्कृति की भावी दिशायें उज्जवल हैं और समाज में जागरण आ रहा है। विद्वानों के साथ - साथ समाज के प्रत्येक घटक को संस्कृति के प्रति जागरूक बनाने का प्रयास आपके द्वारा हो रहा है, यह स्तुत्य है। 12.1.2000 . महावीर राज गेलरा, पूर्व कुलपति - जैन विश्व भारती संस्थान, 5 सी.एच./20, जवाहर नगर, जयपुर A very highly planned and organised effort to place literature on various fronts of Jain philosophy, culture, heritage, art & architecture at one place. I wish it a success and spiritual support. 29.1.2000 I Surendra Kumar Jain Dy. Secretary, Govt. of India, Education Deptt. Secretary, B.D.J. Tirthkshetra Committee, Mumbai We highly appreciate the excellent work. 29.1.2000 . Suresh Jain, I.A.S., Vimal Jain 30, Nishat Colony, Bhopal ___ आज ज्ञानपीठ में आकर एवं यहाँ की गतिविधियाँ देखकर बेहद प्रभावित हुआ। इतनी सारी जैन पत्रिकाओं का एक जगह संकलन एवं चारों अनुयोगों से संदर्भित शोध साहित्य तथा उनका आधुनिक शैली - में कम्प्यूटराइजेशन सुखद है। मैं संस्था के उज्जवल भविष्य की मंगल कामना करता हूँ। 24.2.2000 . चिरंजीलाल बगड़ा, सम्पादक- दिशा बोध 46, स्ट्रेण्ड रोड़, तीसरी मंजिल ... कलकत्ता-700007 - अर्हत् वचन, जनवरी 2000
SR No.526545
Book TitleArhat Vachan 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size24 MB
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