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________________ अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर टिप्पणी - 3 आचार्य जिनदत्त सूरि - अनिलकुमार जैन* आचार्य जिनदत्त सरि श्वेताम्बर जैन परम्परा में खतरगच्छ के एक प्रभावक आचार्य हुए हैं। कहते हैं कि इन्होंने एक लाख तीस हजार लोगों को जैन बनाया। आचार्यश्री का जन्म संवत् 1132 में गुजरात में अहमदाबाद के निकट 'धौलका' ग्राम में हुआ था। उन्होंने मात्र नौ वर्ष की आयु में संवत् 1141 में मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली थी। बाद में उन्हें राजस्थान के चित्तौड़ नगर में आचार्य पद से विभूषित किया गया। उन्होंने धर्म प्रचार का बहत कार्य किया। अपने अंतिम समय में वे अजमेर आ गये तथा वहीं संवत् 1212 में इनका देहावसान हो गया। खतरगच्छ श्वेताम्बर जैन समाज में आचार्यश्री के अंतिम समय की एक चमत्कारी घटना बहुत प्रसिद्ध है। लोगों का कहना है कि जब आचार्य श्री का पार्थिव शरीर अग्नि को समर्पित किया गया तो एक आश्चर्यजनक घटना घटी। उनका पार्थिव शरीर तो पूरा जल गया लेकिन उनके शरीर पर जो चादर, चोलपट्टा तथा मुँहपट्टी थे, वे तीनों जलने से बच गये। बाद में उनके अनुयायी इन तीनों वस्तुओं को जैसलमेर ले गये। ये तीनों वस्तुएँ जैसलमेर दुर्ग में स्थित 'जिन ज्ञान भंडार' में सुरक्षित हैं। इस जानकारी ने एक जिज्ञासा पैदा कर दी है कि क्या कपड़े की वस्तुएँ जलने से बच सकती हैं? वैज्ञानिक तौर पर सोचा जाये तो ऐसा होने असम्भव है। इस बात की चर्चा तपागच्छीय श्वे. जैन मुनि श्री नन्दीघोष विजय गणिजी से भी की। उनका ऐसा अनुमान है कि आचार्य श्री जिनदत्तजी के पार्थिव शरीर को अग्नि को समर्पित करने से पहले शरीर से पुरानी चादर, चोलपट्टा तथा मुँहपट्टी को हटाकर नयी चादर, चोलपट्टा और मुँहपट्टी पहनाई गई होगी। तथा जो ये पुरानी वस्तुएँ थीं, उन्हीं को जैसलमेर में रखा गया होगा। बाद में यह कहा जाने लगा कि ये तीनों वस्तुएँ जलने से बच गयीं। लेकिन मुझे एक अन्य संभावना प्रतीत हो रही है। हो सकता है कि आचार्य श्री ने अंतिम समय में सल्लेखना धारण करने के साथ ही बाह्य परिग्रह चादर आदि का परित्याग कर दिया होगा तथा नग्न दिगम्बर वेश धारण कर लिया हो। यह एक खोज व शोध की बात प्रतीत होती है कि क्या प्राचीन काल में सल्लेखना के समय श्वेताम्बर मुनि वस्त्र परित्याग कर देते थे? और यदि ऐसा करते थे तो यह परम्परा कब तक रही? * बी - 36, सूर्यनारायण सोसायटी, विसत पेट्रोल पम्प के सामने, साबरमती, अहमदाबाद- 380005 अर्हत् वचन, जनवरी 2000
SR No.526545
Book TitleArhat Vachan 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size24 MB
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