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________________ जाता है तथा इनके जो प्रमुख थे उन्हें गणधर कहा जाता है। यूँ तो प्रत्येक तीर्थंकर के समोशरण (धर्म सभा) में गणधर अवश्य होते हैं लेकिन भगवान ऋषभदेव के साथ संभवतया थोड़ा अलग रहा है। उनके समोशरण में प्रथम गणधर वृषभसेन थे। लगता है कि उनके निर्वाण को प्राप्त होने के बाद भी गणधर पद प्रचलित रहता आया। प्रत्येक वह जो भगवान ऋषभदेव द्वारा स्थापित अहिंसा धर्म का नेतृत्व करता था, गणधर या गणपति कहलाता था। इसी परम्परा में अजितनाथ को भी गणधर या गणपति के रूप में हिन्दुओं में भी स्थापित कर लिये गया होगा। इतना अन्तर अवश्य आ गया कि जहाँ तीर्थकर अजितनाथ का चिह्न या लांछन हाथी है, वहीं हिन्दुओं में गणपति या गणेशजी का मुख ही हाथी के समान मान लिया गया है। इस सभावना को टटोलना अपेक्षित है। इससे नये साम्य प्रगट हो सकते हैं। (3) फतेहपुर सीकरी से प्राप्त आदिनाथ की मूर्ति सामान्यत: यह माना जाता है कि आगरा के निकट स्थित फतेहपुर सीकरी को सम्राट अकबर ने बसाया था। लेकिन दिसम्बर' 99 के उत्तरार्द्ध में वहाँ उत्खनन से प्राप्त अनेकों (संभवत: 26) जैन मूर्तियों ने इस मान्यता को गलत सिद्ध कर दिया है। ये सभी मूर्तियाँ ईसा की दसवीं-बारहवीं शताब्दी के मध्य की हैं। प्राय: सभी मूर्तियाँ खण्डित तथा अपूर्ण है। इन सभी मूर्तियों में से मात्र एक मूर्ति लगभग पूरी है और वह है भगवान ऋषभदेव की। यह मूर्ति छह फुट ऊँची है तथा इस पर संवत् 1029 अंकित है। यह मूर्ति भी दो टुकड़ों में है, लेकिन इसे जोड़कर पूर्ण किया जा सकता है। प्राप्त सूचनाओं के आधार पर ये अधिकांश मुर्तियाँ श्वेताम्बर आम्नाय से सम्बन्धित हैं। वहाँ पर श्वेताम्बर आम्नाय के लोग ही पहुँचे हैं। लेकिन हमारा मानना है कि इस प्रकार के कार्यों में दिगम्बरों को भी वहाँ जाना चाहिये तथा पूरी रूचि लेनी चाहिये। संभव है कि वहाँ कही दिगम्बर मूर्तियाँ भी प्राप्त हों। फिर जैन संस्कृति तो हम सभी की है। एक बात यह हैरानी की अवश्य है कि इतनी खण्डित मूर्तियाँ तो एक साथ मिलीं लेकिन कहीं भी किसी मन्दिर के अवशेष नहीं मिले। अत: यह एक गहन अध्ययन का विषय बन गया है। सन्दर्भ - 1. 'Spiritual Affinities in Rishabha & Shiva', by Bal Patil, Times of India, Ahmedabad, 30.12.99) * बी-36, सूर्यनारायण सोसायटी, विसत पेट्रोल पम्प के सामने, साबरमती, अहमदाबाद-380005 भगवान ऋषभदेव अन्तरराष्ट्रीय निर्वाण महामहोत्सव वर्ष 4 फरवरी 2000 से फरवरी 2001 के अन्तर्गत त्रषभ जयन्ती चैत्र कृष्णा नवमीं, 29 मार्च 2000 __उत्साहपूर्वक मनायें। अर्हत् वचन, जनवरी 2000
SR No.526545
Book TitleArhat Vachan 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size24 MB
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