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________________ अर्हत्व कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर टिप्पणी- 2 कुछ विचारणीय बिन्दु ■ अनिलकुमार जैन* (1) भगवान ऋषभदेव तथा भगवान शिव " प्रमाण उपलब्ध हैं जो बताते हैं कि बहुत पहले से ही ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी से ही, ऐसे लोग थे जो प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की उपासना करते थे। इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं कि वर्द्धमान अथवा पार्श्वनाथ से पूर्व से ही जैन धर्म प्रचलित था । यजुर्वेद में ऋषभ, अजितनाथ एवं अरिष्टनेमि तीन तीर्थंकरों के नाम उल्लेखित हैं। भागवद् पुराण इस विचार का समर्थन करता है कि ऋषभदेव जैन धर्म के प्रवर्तक थे।" - ये विचार हैं डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जैन ग्रन्थों में ऋषभदेव के बारे में विस्तृत वर्णन मिलता है। वह चौदहवें कुलकर या मनु नाभिराय के पुत्र थे। ऋषभदेव ने कर्मभूमि की स्थापना की और मानव सभ्यता और संस्कृति का सूत्रपात किया। उन्होंने अहिंसा धर्म की स्थापना की तथा मोक्ष जाने का मार्ग बताया। भगवान ऋषभदेव ने तिब्बत में स्थित कैलाश पर्वत से मोक्ष प्राप्त किया। भगवान ऋषभदेव का लांछन (चिह्न) वृषभ या नन्दी था। - प्राचीन हिन्दू पुराणों में ऋषभदेव को रूद्र या शिव के रूप में प्रस्तुत किया गया है। शैव सम्प्रदाय के लिंग पुराण तथा वायु पुराण में उन्हें सभी क्षत्रिय राजाओं का पूर्वज बतलाया गया है। सर जॉन मार्शल का मानना है कि वैदिक आर्यों में शिव पूजा प्रचलित थी इसके प्रमाण सिन्धु घाटी की सभ्यता के अवशेषों से प्राप्त होते हैं। वहाँ से कई सील ऐसी मिली हैं जिसमें नग्न योगी कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं तथा साथ में वृषभ भी खड़ा है जो कि ऋषभदेव का लांछन (चिह्न) है। सर जॉन मार्शल के अनुसार ये योगी कोई और नहीं बल्कि जैन तीर्थंकर ऋषभदेव हैं। इस प्रकार भगवान ऋषभदेव की प्राचीनता एवं ऐतिहासिकता निर्विवाद है। यहाँ एक विशेष बात यह सोचने की है कि क्या जैनों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव तथा हिन्दूओं के भगवान शिव एक ही हैं? भगवान ऋषभदेव एवं भगवान शिव दोनों ने कैलाश पर्वत को अपनी साधना स्थली बनाई। भगवान ऋषभदेव का लांछन वृषभ है तो इधर भगवान शिव का वाहन भी वृषभ या नन्दी है। भगवान ऋषभदेव नग्न दिगम्बर थे तो भगवान शिव भी रूद्र रूप दिगम्बर थे। भगवान ऋषभदेव तीन गुणों (सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान व सम्यक् चारित्र) के धारक थे तो भगवान शिव भी त्रिशूल के धारक थे। इन सब बातों से ऐसा प्रतीत होता है कि ऋषभदेव तथा शिव दोनों एक ही रहे हैं, कालान्तर में इन्हें दो अलग व्यक्तित्व के रूप में माना जाने लगा। इस बिन्दु पर व्यापक शोध अपेक्षित है। ( 2 ) भगवान अजितनाथ तथा गणेशजी जिस प्रकार भगवान ऋषभदेव तथा भगवान शिव में साम्य नजर आता है, उसी प्रकार का कुछ साम्य दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ तथा हिन्दू देवता गणपति या गणेशजी में भी लगता है। शिवजी के अनुयायियों को संयुक्त रूप से 'गण' कहा जाता है तथा 'गण' के अधिपति को गणपति या गणेश कहा जाता है। गणेश का मुख हाथी के आकार का दिखाया जाता है। इधर जैनों में भगवान ऋषभदेव के अनुयायी साधुओं के समुदाय को गण कहा अर्हत् वचन, जनवरी 2000. 79
SR No.526545
Book TitleArhat Vachan 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size24 MB
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