SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ' 60,000 लोग मारे गये हैं। यह मनुष्यकृत हादसा है जिसमें हम मनुष्य को ही अस्तित्वहीन कर देते हैं। उड़ीसा के तूफान से जो क्षेत्र वीरान और क्षत् - विक्षत् हुआ है सबसे अधिक अन्न उत्पादन वाला क्षेत्र है। अब सराक जैन खेती करने वाले समुदाय के सामने संकट खड़ा है कि खारे पानी से भर गये खेतों में अगली फसल होगी कि नहीं और होगी तो कब ? वर्तमान तो मटियामेट हुआ ही है यह भविष्य में आने वाली भूखमरी का संकेत है। इसी संकट का दूसरा पहलू और चेहरा यह है कि खेतों में सहायक होने वाले 5 लाख से ज्यादा पशु मर गये हैं। किसान की तो मानों कमर ही टूट गई है। गाय, बैलों, भैसों की बड़ी संख्या की उड़ीसा को जरूरत है लेकिन भयानक सच्चाई यह है कि देश में ही गाय, बैलों की संख्या इस कदर गिरी हुई है कि आप चाहकर भी उड़ीसा की मदद नहीं कर सकेंगे। थोड़ी सी विदेशी मुद्रा कमाने के चक्कर और लालच में गाय बैलों की एकदम अन्धाधुंध कटाई चल रही है और भारतीय संस्कृति में हर समय सांस लेने वाली सरकार तथा हमारी सोच ही कत्लखानों में इन जीवनोपयोगी जानवरों की कटाई कम नहीं कर पा रही है वरन सैकड़ों नये नये आधुनिक कत्लखानें खोलने की निरन्तर तैयारी कर रहे हैं। एक आसन्न हादसा हमारे सामने खड़ा है कि जब खेती का हमारा आखिक ढ़ांचा ही टूट जायेगा तब यह हादसा कई उड़ीसाओं से भी ज्यादा भयानक होगा। हादसों के पीछे जो बच जाता है वो क्या है ? हादसों के बाद सिर्फ वही नहीं बचता जिसकी तस्वीरें हम देखते हैं और जिसकी खबरें हम सुनते हैं या अखबारों में पढ़ते हैं। हादसों के बाद टूटा हुआ तन व मन से टूटा हुआ समूह रहता है जिसमें अपने पुराने जीवन का मकान, सामाजिक स्तर और पारिवारिक स्तर तक पहुँचने की क्षमता ही नहीं रह जाती है। सराक भाइयों की बेवक्त दुर्दशा की यही कहानी है जिसकी समूची जैन समाज अनदेखी कर रही है। राहत का काम इसी नजरिये से किया जाता है कि जैसे तैसे लोगों को बसा दिया जाये और हादसे की पहचानों को धो पोंछ दिया जाये। परिणाम अभी मैंने अपनी आंखों से देखे हैं, जिनके घर पक्के थे वे झोपड़ियों में और जो मकान या झोपड़ियों में थे वे प्लास्टिक के परदों में सिमट गये हैं। उनके टूटे मन में उससे बाहर निकलने की शक्ति या उत्साह ही नहीं बचा है। लोग अपने मकान को भी साफ नहीं कर रहे हैं क्योंकि अगर मलवा साफ कर दिया गया तो जब सरकारी आदमी नुकसान का आकलन करने आयेगा तो कोई मुआवजा नहीं मिलेगा। यह स्थिति एक पराजित मनोभूमिका है जो व्यक्तिशः, समूहतः लोगों की संकल्प शक्ति तोड़ रही है। हादसों की एक मनौवैज्ञानिक क्षति भी होती है जो इतनी बड़ी होती है कि उसे संभालने के लिये भी हादसे से निपटना जैसा ही कार्य है। यह राहत बांटकर वापिस आ जाने का काम नहीं है, यह तो स्वयं अपने साधर्मी भाइयों की स्वयं राहत बनकर तकलीफ में पड़े लोगों के बीच रहने का सवाल है। उड़ीसा के अपने सराक भाइयों की कराहें / सिसकियाँ क्या हम तक पहुँच रही हैं? क्या उड़ीसा के हादसे से हम कुछ सिखने का प्रयास करेंगे ? पिछले साल हमने खारवेल महोत्सव भुवनेश्वर में राष्ट्रीय स्तर पर मनाया। बड़े- बड़े जलसे, संगोष्ठियाँ हुईं लेकिन आज जब वहीं की जैन विरासत, स्थापत्य, जैन मन्दिर और उस संस्कृति के वाहक सराक अपनी अस्मिता को संजोकर रखने में असफल हो रहे हैं और लाशों जैसी जिंदगी जीने को मजबूर हैं तो इस समाज का क्या फर्ज है ? ऋषभदेव की कृषि करने की सीख पर चलने वाले आज सड़क की पटरी पर खड़े हैं। आइये ! हम सब मिलकर अपने भाइयों की पीड़ा में सहभागी बनें। * एन- 14, चेतकपुरी, ग्वालियर - 474009 अर्हत् वचन, जनवरी 2000 78
SR No.526545
Book TitleArhat Vachan 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy