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________________ अर्हत् कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर टिप्पणी- - 1 उड़ीसा के सराक चक्रवाती विभीषिका के शिकार ■ अभयप्रकाश जैन* उड़ीसा के सराक भगवान आदिनाथ ( ऋषभ ) के नाम पर अपने गाँव के नाम आदिदेव, आदिमूरि, आदिलोक रखते हैं। कपड़े बनाने, रंगने का काम करने के कारण रंगिया भी कहलाते हैं, कुछ लोग उन्हें रंगणी भी कहते हैं। चौधरी, साहू, मांझी, तटिवा इनके उपनाम हैं। 10 दिसम्बर से 20 दिसम्बर 99 के मध्य की गई उड़ीसा क्षेत्र की यात्रा तथा पीड़ितों के मध्य रहने से निम्न तथ्य सामने आये हैं जो दिल दहलाने वाले हैं। क्या जैन समाज का ध्यान इस ओर जायेगा ? हादसों के बीच जीना सराक बन्धुओं की सदैव नियति रही है। घोर विपदा के क्षणों में भी इस जाति ने समाज के सिद्धान्तों को व्यक्तित्व के सहज स्वरूप के सौन्दर्य के रूप में अक्षुण्ण रखा है। यात्रा ग्वालियर से चलकर कटक तक पहुँची फिर एस. के. महापात्र I.P.S. के तत्वावधान में सर्वेक्षण सहायता की मुहिम की गई। जगतसिंहपुर, जसपुर, केन्द्रापारा, वालासूर, खुदी, कन्दरपुर, पारादीप, कुजंग, पंचायन, पन्णुआ, पटिलो नगरों कस्बों के दौरे में पाया गया कि लगभग 20 जैन मन्दिर नेस्तनाबूद हो गये हैं, उनका नामोनिशान भी नहीं बचा है, मूर्तियाँ अनेक स्थानों पर इकट्ठी कर दी गई हैं। सराक भाइयों की अकल्पनीय हादसे से दर्दनाक स्थिति हो चुकी है। न वे जीवित रहने लायक हैं और न ही मरने के लायक । वे साक्षात जीती जागती लाशें बन गये हैं। 48 घंटे की उस चक्रवाती विनाश लीला ने उड़ीसा के उन 12 तटवर्ती जिलों को पाट लेने की कोशिश की जो उडीसा के अन्नदाता और कपड़ादाता थे। इस किस्म के हादसे के बाद अभी एक-डेढ़ महीना ही बीता है और हम पूछने लगे हैं कि हम कब तक उड़ीसा को रोयें। ऐसा पूछने वाले भूल जाते हैं कि हम एक ऐसी अभागी परिस्थिति के बीच रह रहे हैं जिसमें हमारे सराक भाई जो उड़ीसा में रह रहे हैं, उनका स्थाई भाव है, अपनी नियति से बराबर लड़ना है। हमारा देश और खास तौर पर उड़ीसा दुनिया के सबसे अधिक हादसों से घिरा रहने वाला क्षेत्र है इसमें सभी प्रकार के हादसे सदैव से शामिल रहे हैं प्राकृतिक, इन्सानी, साम्प्रदायिक तथाकथित विकासकृत महामारी, आतंकवादी आदि आदि । हमारा उड़ीसा का 2516 कि. मी. तटीय हिस्सा भयंकर तूफान का क्रीड़ास्थल बन गया है। अनगिनत पशुओं और पक्षियों की लाशें बिखरी पड़ी हैं। समुद्री मछलियाँ भी विषाक्त हो गई हैं, उनके पेट से मानव हड्डियाँ अंगूठे, उंगलियाँ तक निकल रहे हैं। मकान बनाने के लिये ईंटें नहीं हैं, न ही बन पा रही हैं। लोग अपने घर बनने की राह देख रहे हैं और जिसे जिस शहर की जिस फुटपाथ पर जगह मिल पा रही है वह उधर ही निकलने की ताक में है। इस हादसे ने तथा बदइंतजामी ने आदमी को फुटपाथी मात्र बना दिया है। - - उड़ीसा के तूफान में बात दब गई ( या दबा दी गई), वह यह है कि समुद्र जब 50 फुट ऊँचा उठा और 20-25 कि.मी. तक के हिस्से को पोंछता हुआ चला गया तो उसमें सबसे ज्यादा मौतें उनकी हुईं जो गैरकानूनी ढंग से बंगलादेश से आकर चोरी से समुद्री मछलियों का शिकार करके बेचते थे। इस समुदाय ने समुद्री पर्यावरण को क्षति पहुँचाई और समूचे समुद्र की मछलियाँ साफ कर दीं। इन्हीं लोगों ने सागर किनारे के समुद्री जंगल और खास किस्म की घास की घनी दीवारों को भी साफ कर दिया था जिसका सीधा परिणाम तूफान की इस कदर विकरालता के रूप में हमारे सामने आया । उड़ीसा की सरकार व अधिकारी इस तथ्य को छिपा रहे हैं। बंगाली टोला के लगभग अर्हत् वचन, जनवरी 2000 77
SR No.526545
Book TitleArhat Vachan 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size24 MB
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