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________________ 11. अंगदेश की चम्पानगरी के निवासी श्रेष्ठी प्रियदत्त की बाल ब्रह्मचारिणी पुत्री अनन्तमती ने संयम से सहित धर्म विज्ञान का अर्जन किया। दुर्भाग्यवश उसने जीवन में अनेक भयंकर कष्ट उठाये, परन्तु संयम के प्रभाव से देवों ने रक्षा की। अन्त में कमल श्री आर्यिका के निकट आर्यिका दीक्षा को स्वीकृत किया। मरण समय णमोकार मंत्र के ध्यान के प्रभाव से बारहवें सहस्रार स्वर्ग में देवपद प्राप्त किया।28 12. काशी नरेश की सुपुत्री सुलोचना सती जैन धर्म में श्रद्धावती एवं ज्ञानवती प्रसिद्ध थी। एक दिन उस की सखी विन्ध्यश्री उद्यान में फूल तोड़ने गई। वहां सहसा विन्ध्यश्री को ने काट लिया, वह मूर्छित हो पृथ्वी पर गिर पड़ी। सुलोचना ने महामंत्र सुनाया, जिसके प्रभाव से चलकर वह गंगा देवी स्वर्ग में हुई। 29 13. सोमासती को सासु ने शील भंग का कलंक लागया। परिवारजनों ने उसकी परीक्षा के लिये घट में सर्प रखकर उसको निकालने के लिये कहा, सोमा ने नमस्कार मंत्र के शुद्ध स्मरणपूर्वक सर्प को निकालने का प्रयास किया तो सर्प के स्थान पर फूल माला का उद्भव हुआ। चारों ओर से सीमा की जयध्वनि हई। यह महामंत्र का प्रखरप्रभाव है। 30 इस प्रकार महामंत्र के प्रभाव के विषय में जैन दर्शन के प्रथमानुयोग शास्त्रों में बहुत कथाएं प्रसिद्ध हैं। विस्तार के भय से यहां पर कतिपय कथाओं का ही दिग्दर्शन कराया गया है। 14. महामंत्र के अविनय से चक्रवर्ती सुभौम का घोर पतन - भारत का आठवां चक्रवर्ती सुभौम बहुत रसनालोभी था। आदत के अनुसार उसने स्वादिष्ट खीर बनाई। खाने के लोभ से उसने गर्म खीर खाना प्रारंभ किया तो हाथ एवं जीभ जल गई। उसने क्रोध से गर्म खीर का थाल जयसेन - पाचक को मारा, तो पाचक मरकर व्यन्तर देव हुआ। प्रतिक्रिया की दृष्टि से व्यन्तर ने एक दिन श्रेष्ठ फल सुभौम को भेंट किये। फलखाने पर वह प्रसन्न हुआ। चक्री ने कहा, ये फल किस उद्यान में हैं हमें ले चलो। चक्री चला, मार्ग में एक नदी पार करते समय देव ने माया से जल वर्षा कर नदी वेग बढ़ा दिया। चक्री व्याकुल हुआ, उसने तापसी व्यन्तर से कहा, तापस बचाओ, जीवन समाप्त हो रहा है। तापस ने कहा - महाराज अब हमारे वश की यह . बात नहीं रही, हम उपद्रव नहीं टाल सकते। परन्तु एक उपाय रक्षा का हो सकता है कि यदि आप महामंत्र को जल में लिखकर अपने पैरों से मिटा देवें तो आप बच सकते हैं, अन्यथा नहीं। चक्री ने तत्काल जल में महामंत्र लिखकर पैरों से मिटा दिया, वह तत्काल जल में डूबकर मृत हो गया और सप्तम नरक में नारकी हो गया। यह महामंत्र के अविनय करने का फल है। अत: किसी भी व्यक्ति को महामंत्र का अविनय नहीं करना चाहिये। 31 भारतीय संस्कृति और साहित्य में जैन मंत्र शास्त्र का महत्वपूर्ण स्थान है। जैन शास्त्रों में वर्णित लाखों मंत्रों की साधना से एवं उनके मूलमंत्र की साधना से लौकिक और अलौकिक कार्य सिद्ध होते हैं। व्याकरण से मंत्र शब्द सिद्ध होता है। णमोकार मंत्र के महत्व बोधक चार नाम प्रसिद्ध हैं 1. अनादि निधन मंत्र, 2. मूल मंत्र, 3. महामंत्र, 4. णमोकार मंत्र (नमस्कार मंत्र)। म.प्र. के तात्कालिक वित्तमंत्री स्व. श्री शिवभानुसिंह सोलंकी द्वारा महामंत्र की पर्याप्त प्रशंसा की गई है। इस मंत्र में व्याप्त धन और ऋणात्मक विद्युत शक्तियों से कर्मरज और लौकिक कष्ट भस्म हो जाते हैं। इसमें द्रव्य एवं भावश्रुत का समावेश हो जाता है, यह द्वादशांग का सार है। प्राकृतभाषा के इस महामंत्र का संक्षिप्त रूप एकाक्षर मंत्र 'ओ' सिद्ध होता है। विज्ञान के आलोक में भी महामंत्र का महत्व सिद्ध अर्हत् वचन, जनवरी 2000
SR No.526545
Book TitleArhat Vachan 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size24 MB
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