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________________ प्रभाव से सर्प धरणेन्द्र देव और नागिन उसकी पद्मावती देवी हुई। दोनों ने मुनिराज पार्श्वनाथ का उपसर्ग दूर किया। 20 4. महामंत्र के उच्चारण से सुभग ग्वाले का उद्धार - चम्पापुरी निवासी सुभग ग्वाले को निकटभव्य जानकर एक मुनिराज ने णमोकार मंत्र का उपदेश दिया। एक समय गायों की रक्षार्थ प्रवाहपर्ण गंगा में वह कद पडा। महामंत्र का उच्चारण करते हुए उसका मरण हो गया। वह ग्वाला अपने ही मालिक सेठ वृषभदास के यहां सुदर्शनकुमार नाम का पुत्र हुआ। कामदेव सुदर्शनकुमार तपस्या करते हुए पाटलिपुत्र (पटनानगर) से मुक्ति को प्राप्त हुए।21 5. महामंत्र के ध्यान से राजकुमार वारिषेण का चमत्कार - मगधदेश के सम्राट श्रेणिक का पुत्र वारिषेण चतुर्दशी की रात्रि में श्मशान में महामंत्र का जाप कर रहा था। असत्य चोरी के आरोप में राजा के आदेश से सैनिक द्वारा तलवार का प्रहार गले में किया गया। महामंत्र के प्रभाव से खड्ग फूलों की माला बन गई। वारिषेण मुनिदीक्षा लेकर तप करने लगे। 22 6. महामंत्र को सिद्ध करने का चमत्कार - मगधदेशीय राजगृहनगर में श्रेष्ठि जिनदत्त, कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में श्मशान प्रांगण में मूलमंत्र के ध्यान में मग्न थे। स्वर्ग से आये विद्युत्प्रभ देव ने उनकी अटल. परीक्षा के पश्चात् प्रसन्न होकर जिनदत्त के लिये आकाशगामिनी विद्या प्रदान की। वह प्रतिदिन मेरूपर्वत की वंदना करने लगे। 23 7. महामंत्र को सिद्ध करने का चमत्कार - राजगृहनगर के अंजनकुमार ने जिनदत्तश्रेष्ठि के सदुपदेश से शुद्ध भावों से महामंत्र को विधिपूर्वक सिद्ध किया। सिद्ध हुई उस आकाशगामिनी विद्या ने उसको मेरुपर्वत के अकृत्रिम चैत्यालय में भेज दिया। वहां मुनिराज के उपदेश से अंजन ने मुनि दीक्षा ग्रहण की। वहां से कैलाशपर्वत पर जाकर तप करते हुए सातवें दिन उन्होंने कैलाश से मुक्ति को प्राप्त किया।24 8. महामंत्र की साधना से महासतियों के अतिशय - अयोध्या में अपने सतीत्व को निर्दोष सिद्ध करने के लिये सती सीता ने महामंत्र के प्रभाव से, प्रचण्ड अग्नि कुण्ड में व्यक्त हुए जल के मध्य सुवर्णमय सिंहासन प्राप्त किया। अनन्तर आर्यिका दीक्षा ग्रहण की। और तप करते हुए 16 वें स्वर्ग में देवपद प्राप्त किया। 25 9. काशीराज की सुपुत्री सुलोचना सती ने महामंत्र के प्रभाव से ग्राहग्रसित गंगा में डूबते हुए हाथी को सुरक्षित कर दिया था। हाथी पर बैठी हुई सुलोचना ने आनन्द से गंगा को पार किया। 26 10. नारायणदत्ता नामक सन्यासिनी के बहकावे में आकर मालव नरेश चण्डप्रद्योत ने, रौरवपुर नरेश उद्दायन की पत्नी प्रभावती पर मोहित होकर, नृप उद्दायन की अनुपस्थिति में रौरवपुर पर आक्रमण किया। उस समय रानी प्रभावती ने, अन्न जल का त्याग कर महामंत्र की आराधना की। तत्काल एक देव ने आकर उस सेना को उड़ाकर प्रभावती के शील को सुरक्षित किया। अन्त में रानी ने आर्यिका दीक्षा लेकर जीवनान्त में पंचमस्वर्ग में देवपद को प्राप्त किया। 27 36 अर्हत् वचन, जनवरी 2000
SR No.526545
Book TitleArhat Vachan 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size24 MB
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