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________________ प्रकाश का कार्य करती है, प्रार्थना का फल अचिन्त्य होता है। वह मंगल को देती है।" 16_ अमेरिका के द्वितीय वैज्ञानिक जज हेरोल्ड मेहिना का अभिमत है - "आत्मशक्ति का विकास तभी होता है जब मनुष्य यह अनुभव करता है कि मानव शक्ति से परे भी कोई वस्तु है। अत: श्रद्धापूर्वक की गई प्रार्थना बहुत चमत्कार उत्पन्न करती है।' इस उद्धरण में भी णमोकार मंत्र की प्रार्थना के लिये संकेत किया गया है। अमेरिका के एक तीसरे वैज्ञानिक डा. एलफ्रेड होरी का अभिमत है कि - "सभी बीमारियां शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक क्रियाओं से सम्बद्ध हैं अत: जीवन में जब तक धार्मिक प्रवृत्ति का उदय नहीं होगा, रोगी का स्वास्थ्य लाभ करना कठिन है। प्रार्थना धार्मिक प्रवृत्ति पैदा करती है। आराध्य के प्रति की गई भक्ति में बहत बड़ा आत्म संबल है। उच्च या पवित्र आत्माओं की आराधना जादू का कार्य करती है।" 17 उक्त उद्धरण में भी महामंत्र की आराधना के प्रति संकेत किया गया है कि महामंत्र की पवित्र आत्माओं की प्रार्थना आत्मसंबल को बढ़ाती हैं। जैन दर्शन में महामंत्र के महत्व को अभिव्यक्त करने वाली आचार्यकृत अनेक रचनाएं विद्यमान हैं यथा णमोकार मंत्र माहात्म्य, नमस्कारकल्प, नमस्कार माहात्म्य, णमोकार मंत्र की महिमा आदि। आचार्य उमास्वामी द्वारा णमोकार मंत्र के विषय में कथित माहात्म्य इस प्रकार यह महामंत्र संसार में सार है, त्रिलोक में अनुपम है, हिंसा आदि सर्व पापों का नाशक है, जन्ममरण आदि रूप संसार का उच्छेदक है, सर्प आदि जीवों के तीक्ष्ण विष का नाशक है, द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकर्म का समूह नाशक है, लौकिक एवं अलौकिक कार्यों की सिद्धि का प्रदायक है, मक्ति सख का जनक है. इसका ध्यान करने से केवल की प्राप्ति होती है, पुष्पदंत आचार्य द्वारा प्रणीत इस महामंत्र को प्रति समय जपते रहो। इसका शुद्ध ध्यान करने से जन्ममरण आदि 18 दोषों से मुक्ति होती है। यह महामंत्र देवेन्द्रों की विभूति का प्रदायक है, मुक्ति लक्ष्मी को सिद्ध कराने वाला, चतुर्गति के कष्टों का उच्छेदक, समस्त पापों का विनाशक, दुर्गति का निरोधक, मोह माया का स्तंभक, विषयाशक्ति का प्रक्षीणक, आत्मश्रद्धा का जाग्रतिकारक और यह महामंत्र प्राणि सुरक्षाकारक है। महामंत्र से स्वजीवन का उद्धार करने वाले व्यक्ति - 1. प्राचीन भारत के महापुरनगर में मेरूदत्त श्रेष्ठी के पुत्र पद्मरूचि नामक युवक ने, एक मरणासन्न बैल को कर्ण में महामंत्र सुनाया, बैल शरीर त्याग कर उसी नगर के नृप का वृषभ ध्वज नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ। पद्मरूचि और वृषभ ध्वज दोनों मित्र, धर्म की साधना से द्विस्वर्ग में देव हुए। 18 . . 2. बिहार प्रान्तीय राजगृह नगर के नृप सत्यन्धर के सुपुत्र विद्वान जीवन्धरकुमार ने एक नदी के तट पर, मरणासन्न कुत्ते के कान में, दयाभाव से महामंत्र सुनाया। मंत्र के प्रभाव से कुत्ता अगले भव में यक्षेन्द्र हुआ। यक्षेन्द्र ने कृतज्ञता व्यक्त करते हुए जीवन्धर के लिये तीन मंत्र प्रदान किये। 19 3. वाराणसी नगरी में एक सन्यासी डड जलाकर तप कर रहा था। भ्रमण करते हए तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने अवधिज्ञान से वहां जान लिया कि इस लक्कड़ में नाग-नागिनी का एक जोड़ा है। लक्कड़ चीर कर उन्होंने जलते हुए सर्पयुगल को णमोकार मंत्र सुनाया। मंत्र के अर्हत् वचन, जनवरी 2000
SR No.526545
Book TitleArhat Vachan 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size24 MB
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