SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नहीं आयेंगे, वे जन्म - मरण के दु:खों से छूटकर अनन्तज्ञानी और अनन्तसुखी हो गये हैं। . इसी प्रकार से चतुर्थ काल में दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ से लेकर श्री वर्द्धमान स्वामी (महावीर स्वामी) तक चौबीस तीर्थंकर हुए हैं। अभी पाँचवां काल चल रहा है, आगे छठा काल आयेगा। बौद्ध दर्शन के आचार्य धर्मकीर्ति लिखते हैं - 'प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव और अन्तिम तीर्थंकर महावीर स्वामी ये दिगम्बर धर्म के उपदेष्टा सर्वज्ञ भगवान हुए हैं।' भरत सम्राट के नाम से भारतवर्ष - - भगवान के प्रथम पुत्र भरत के नाम से ही इस देश का नाम 'भारतवर्ष' पड़ा है, ऐसा वैदिक ग्रन्थ भागवत में, मार्कण्डेय पुराण, वायुपुराण, नृसिंहपुराण, वराहपुराण, लिंगपुराण, विष्णुपुराण, नारदपुराण, शिवपुराण आदि ग्रन्थों में उपलब्ध है। भगवान ऋषभदेव की मूर्तियाँ - वर्तमान में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की सर्वप्राचीन और सबसे बड़ी मूर्ति बड़वानी तीर्थक्षेत्र पर है जो कि चौरासी फुट ऊँची खड्गासन है। लंदन के म्यूजियम में भी भगवान ऋषभदेव एवं महावीर स्वामी की मूर्तियाँ उपलब्ध हैं। इन ऋषभदेव के श्री आदिनाथ, वृषभदेव, पुरूदेव आदि अनेक नाम हैं। पुराणों में लिखा है कि अड़सठ तीर्थों की यात्रा करने से जो फल प्राप्त होता है, भगवान आदिनाथ के स्मरण मात्र से वह फल प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार जैनेतर वेदों, पुराणों में भी भगवान ऋषभदेव की महिमा गाई गई है। ऐसे भगवान ऋषभदेव हम सभी को उत्तम सुख प्रदान करें, यही प्रार्थना है। अनन्त भगवंतों का अस्तित्व - अनन्तों उत्सर्पिणी- अवसर्पिणी काल के प्रत्येक चतुर्थ काल में चौबीस-चौबीस तीर्थंकर होते रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे तथा तीर्थंकरों के अतिरिक्त भी अनेक महापुरुष कर्मों को नष्ट कर मोक्ष प्राप्त करते रहते हैं, वे भी भगवान कहलाते हैं जैसे कि भरत, रामचन्द्र, हनुमान आदि। अत: जैन धर्म के अनुसार अनन्तों भगवान माने गये हैं। जैन धर्म - ___ जो कर्मों को जीते वो 'जिन' हैं, उसके उपासक 'जैन' कहलाते हैं इसलिये जैन धर्म किसी के द्वारा स्थापित नहीं किया गया है प्रत्युत् अनादि अनन्त है। __जैन धर्म का मूलमंत्र णमोकार महामंत्र है, इसे अपराजित मंत्र भी कहते हैं। णमोकार मंत्र - - णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं॥ यह महामंत्र सर्व पापों का नाश करने वाला है और सर्व मंगलों में पहला मंगल है, अत: इस महामंत्र को हमेशा जपते रहना चाहिये। प्राप्त - 19.12.99 अर्हत् वचन, जनवरी 2000
SR No.526545
Book TitleArhat Vachan 2000 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2000
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy