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________________ निर्माण के इतिहास को भेदकर परिभ्रमण कर सकते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि विगत समय का अवश्य ही कोई ऐसा अदृश्य सूत्र हमारे पास है, जिसे ढंग से समझ लेने पर हम रहस्यमय सृष्टि के अनेकों अज्ञात लोकों को जान सकते हैं। वर्तमान मनोवैज्ञानिकों के प्रयास भी इन दिनों कुछ इसी ओर हैं। पाश्चात्य जगत में 'अवचेतन' के नाम पर तहलका मचाने वाले सी.जी. युंग "Memories Dreams and Reflections" में लिखते है कि मनोविज्ञान अवश्य ही उन्नत विज्ञान है जिससे काल के रहस्य को जाना जा सकता है। इस क्रम में किए गये अनुसंधान मानव को उसके भूत और भविष्य की झांकी दिखा सकते हैं तब त्रिकालदर्शी होना उसके लिए कोई अनूठी बात न होगी। मनोवैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों में पाया है कि सम्मोहित अवस्था में व्यक्ति अपने बीते हए जीवन की समस्त घटनाओं का साक्षात्कार कर सकता है। इस ग्रीवन का "Time Birth" ग्रन्थ उल्लेखनीय है। उनका कहना है कि सम्मोहन की स्थिति में व्यक्ति की चेतना पार्थिव शरीर को लांघ कर काल के किसी उच्चतर आयाम में प्रवेश कर जाती है। जहां भूत एवं भविष्यत घटनाओं से संबंधित सभी तथ्यों तथा प्रत्येक जानकारियों से संपर्क स्थापित किया जा सकता है। किस तरह वर्तमान के बंधन को शिथिल कर उन्नत आयामों से संपर्क किया जा सकता है? इसके जवाब में डब्लू.एच.डन ने अपने ग्रन्थ “Experiment with Time" में कहा है कि जब हम सामान्य चेतनावस्था को शिथिल कर गहरी सुषुप्ति की स्थिति में पहुँचते हैं तो भूत और भविष्य उसी तरह अनुभव की परिधि में आ सकते हैं जिस तरह आमतौर पर वर्तमान अनुभव में आता है। निष्कर्ष धर्म हो या दर्शन, चाहे भौतिक विज्ञान हो या मनोविज्ञान सभी अपने-अपने नजरिये से काल चिंतन करते हैं और उसकी प्रस्तुति करते हैं। भारतीय दर्शन में लगभग प्रत्येक दर्शन काल का चिंतन करता है, कुछ उसे नित्य तत्व मानते हैं कुछ उसे मात्र घंटा, पल, दिन - रात की गणनाओं में सीमित कर देते हैं। न्यायवैशेषिक का 'कालचिंतन' जैनदर्शन के 'कालद्रव्य' के बहुत करीब है किन्तु जैनदर्शन में ही दिगम्बर और श्वेताम्बर ये दोनों ही परंपरायें काल पर अलग-अलग चिंतन देती है। विज्ञान का काल संबंधी चिंतन जैन दर्शन के काल संबंधी चिंतन के धीरे - धीरे करीब पहुँचता जा रहा है। विज्ञान में कई वैज्ञानिकों ने काल के संदर्भ में विभिन्न प्रयोग एवं विभिन्न कल्पनायें की हैं किन्त वे संतष्ट दिखायी नहीं देती। उदाहरण के तौर पर हम सूक्ष्मतम काल को ही लें, कुछ समय तक वैज्ञानिक 'सेकेण्ड' तक ही काल की सूक्ष्मता मानते थे, किन्तु जैनदर्शन में 'समय' काल द्रव्य की सूक्ष्मतम पर्याय है। कहा जाता है कि जब हम एक पलक झपकाते हैं तो उसमें अनन्त समय बीत जाते हैं। इसी अवधारणा के पीछे वैज्ञानिक विकास हुआ। डॉ. आर. एन. शर्मा की दी हुयी जानकारी के अनुसार सेकेण्ड की पहली अधिकारिक परिभाषा सन् 1875 में पेरिस के निकट सेवरेस में दी गयी, उसके बाद 1956 में इसे संशोधित किया गया, किन्तु यह भी उचित नहीं बैठी तब 1967 में सेकेण्ड की सबसे परिशुद्ध परिभाषा दी गयी जो कि आज तक सही मानी जाती है। इसमें कहा गया है कि 'सीसियम 12 परमाणु की आधारभूत अवस्था में उसके हाइफाइन स्तरों में होने वाले 9,19,26,31,700 विकिरणों की अवधि एक सेकेण्ड के बराबर होती है। वैज्ञानिक सेकेण्ड के भी अन्दर गये और इतना हो जाने पर भी नयी खोज अर्हत् वचन, जुलाई 99 29
SR No.526543
Book TitleArhat Vachan 1999 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size5 MB
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