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________________ आचार्यश्री देवेन्द्रमुनिजी महाराज का देवलोक गमन श्री वर्द्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ के तृतीय पट्टधर आचार्य पूज्य श्री देवेन्द्र मुनिजी महाराज का 26 अप्रैल 99 को प्रात: मुम्बई में देवलोक गमन हो गया। 68 वर्षीय आचार्यश्री को प्रात: अस्थमा का दौरा पड़ा तथा उन्हें तुरंत ही पुनमिया अस्पताल ले जाया गया, जहाँ चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। आचार्य श्री के देवलोकगमन का दुखद समाचार प्राप्त होते ही जैन समाज में शोक की लहर व्याप्त हो गई। उनके आकस्मिक निधन से श्रमण संघ की महान एवं अपूरणीय क्षति हुई है। आचार्य श्री घाटकोपर स्थित जैन स्थानक भवन में विराजित थे, आचार्यश्री देवेन्द्र मुनिजी महाराज श्रमण संघ के ततीय पटटधर आचार्य थे। उनका जन्म 7 नवम्बर 1931 को उदयपुर के जैन बरड़िया परिवार में हुआ था। संत समागम और धर्मभावना से प्रेरित होकर बालक धन्नालाल ने मात्र 9 वर्ष की आयु में 1 मार्च 1941 को जैन भगवती दीक्षा ग्रहण की थी। आपने गुरुदेव पुष्कर मुनिजी महाराज के सान्निध्य में जैन आगमों एवं विभिन्न धर्मों के ग्रंथों का गहन अध्ययन किया। आचार्यश्री प्रबुद्ध विचारक व चिन्तनशील लेखक थे। उन्हें अनेक भाषाओं का ज्ञान प्राप्त था। अपने जीवनकाल में उन्होंने लगभग 400 ग्रंथों का लेखन व संपादन किया। अपने ओजस्वी प्रवचनों के माध्यम से देश में व्याप्त अनैतिकता, भ्रष्टाचार, हिंसा व आंतकवाद के विरूद्ध जनजागरण किया। देश के अधिकांश राज्यों में उन्होंने पैदल विहार कर भगवान महावीर के सत्य, अहिंसा, प्रेम, शांति और भाईचारे का संदेश जन-जन तक पहुँचाया। आपकी बहुमुखी प्रतिभा से प्रभावित होकर आचार्य श्री आनंदऋषिजी महाराज ने आपको क्रमश: उपाचार्य व श्रमण संघ के आचार्य के पद पर आसीन किया। आपके सान्निध्य में जैन श्रमण संघ में 1200 साधु - साध्वीगण (स्थानकवासी परम्परा के) देश के विभिन्न भागों में विचरण कर रहे हैं। कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ आपके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता है। श्री शशी भाईजी का निधन श्री कानजीस्वामी के सहयोगी, आध्यात्म ग्रन्थों के ज्ञाता एवं अध्येता श्री शशी भाईजी का दिनांक 22.3.99 को प्रात:काल 4.15 बजे आत्मसमाधिपूर्वक निधन हो गया। यह दुखद समाचार प्राप्त होती ही मुम्बई, कलकत्ता, हैदराबाद, आगरा, मद्रास, अहमदाबाद आदि शहरों से सैकड़ों मुमुक्षुवृंद पहुंच गये। उस वक्त 80 लाख की दानराशि की घोषणा भिन्न-भिन्न कार्यों के लिये की गई। कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ परिवार दिवंगत आत्मा की शीघ्र मुक्ति की कामना करता है। अर्हत् वचन, अप्रैल 99 85
SR No.526542
Book TitleArhat Vachan 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size23 MB
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