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________________ आचार्य उमास्वाति (मी) और उनकी रचनायें भोगीलाल लहेरचंद इन्स्टीट्यूट ऑफ इन्डॉलॉजी, दिल्ली पिछले 14 वर्षों से दिल्ली में प्राचीन भारतीय विद्याओं के क्षेत्र में शोध व प्रकाशन के साथ-साथ 'प्राकृत भाषा एवं साहित्य' और 'जैन धर्म व दर्शन' के विषय में अनेक व्याख्यान् संगोष्ठियों, कार्यशालाओं तथा ग्रीष्म व शरत्कालीन अध्ययनशालाओं के आयोजन में पूर्ण सक्रियता से लगा हुआ है। इस संस्थान के द्वारा दिनांक 4, 5, 6 जनवरी 99 को इण्डिया इण्टरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली, में 'आ. उमास्वाति (मी) और उनकी रचनायें इस विषय पर एक अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गयी । आ. उमास्वाति (मी) ने संस्कृत भाषा में निबद्ध वैशेषिकसूत्र एवं न्यायसूत्र आदि सूत्र - ग्रंथों की शैली में रचित तत्वार्थसूत्र ग्रन्थ में जैन धर्म, दर्शन, सिद्धांत और आचार के सभी विषयों को 10 अध्यायों में लगभग 350 सूत्रों में निबद्ध किया है। उनका यह तत्वार्थसूत्र जैन समुदाय के सभी सम्प्रदायों में निर्विवाद रूप से एक अत्यन्त श्रद्धास्पद् और प्रामाणिक धर्मग्रन्थ माना जाता है। इस कारण उनके इस ग्रन्थ पर संस्कृत, हिन्दी, गुजराती, मराठी, कन्नड़, ढुढारी, राजस्थानी तथा अंग्रेजी भाषाओं और बोलियों में 100 से अधिक टीकाएं, भाष्य व अनुवाद उपलब्ध हैं। भारतीय परम्परा में आ. उमास्वाति (मी) के योगदान को स्पष्ट करने के लिए ही यह अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गयी थी । संक्षिप्त आख्या संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए प्रख्यात विधिवेत्ता डॉ. एल. एम. सिंघवी ने कहा कि आ. उमास्वाति का तत्वार्थसूत्र सभी धर्मग्रन्थों में एक ग्रन्थराज है। उनका यह ग्रन्थ जैन तत्व ज्ञान, दर्शन, विज्ञान एवं आचार शास्त्र का एक लिखित संविधान है। यह ज्ञान और चारित्र का एक विश्वलेख है। सैद्धांतिक रूप से इसमें सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक् चारित्र इस रत्नत्रयी का विवेचन है। ये तीनों एकत्र मोक्ष के मार्ग का निर्माण करते हैं । तीन दिनों की इस संगोष्ठी में अमेरिका, फ्राँस तथा जापान के विद्वान प्रतिनिधियों के अतिरिक्त सम्पूर्ण भारतवर्ष के अनेक विद्वान प्रतिनिधियों एवं राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय जैन समाज के विभिन्न वर्गों व संस्थाओं के अनेक गणमान्य महानुभावों और नेताओं ने अत्यंत सक्रियता से भाग लिया। संगोष्ठी में 21 शोधपत्रों का वाचन तथा उन पर गंभीर चर्चा के साथ 4 विशेष व्याख्यान भी हुए। इस संगोष्ठी की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह रही कि इसके आयोजन व उसकी अभूतपूर्व सफलता में स्वदेश एवं विदेशों के अनेक जैन संगठन व संस्थाओं का अत्यन्त सक्रिय योगदान प्राप्त हुआ। इन सहयोगी संस्थाओं के नाम निम्नलिखित हैं। 1. इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली। 2. श्री नाकोडा पार्श्वनाथ जैन ट्रस्ट | 3. जैन इण्टरनेशनल, अहमदाबाद । 4. दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, हस्तिनापुर (उ.प्र.) 5. दि. जैन अकॉडेमिक फाउण्डेशन ऑफ नार्थ अमेरिका, लॅबॅक, टैक्सस । 6. श्री पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी 7. जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं ( (राज.) अर्हत् वचन, अप्रैल 99 डॉ. विमलप्रकाश जैन निदेशक - बी. एल. इन्स्टीट्यूट आफ इण्डोलोजी, दिल्ली 83
SR No.526542
Book TitleArhat Vachan 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size23 MB
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