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________________ 23.2.99 आपकी सम्पादकोचित आन्वीक्षिकी से समृद्ध अर्हत् वचन का जनवरी अंक 'सराक एवं जैन इतिहास विशेषांक' के रूप में प्राप्त कर सारस्वत परितोष का बोध हुआ। इस अंक का आलेख पक्ष और जैन जगत् के उत्कर्ष की गति - प्रगति से सन्दर्भित सूचना पक्ष दोनों ही समानान्तर रूप में उपादेय है 'सराक' (श्रावक) जाति के विषय में समग्रता की जानकारी कराने वाली पत्रिकाओं में 'अर्हत् वचन' के इस विशेषांक ने स्वतंत्र मूल्य आयत्त किया है। सराक जाति के ऐतिहासिक और सामाजिक पक्ष के उद्भावन से इस अंक की तद्विषयक शोध- महार्धता शोधकर्ताओं के लिये प्रामाणिक और विश्वसनीय उपजीव्य बन गई है। आपकी सम्पादन दृष्टि की वैज्ञानिकता के प्रति प्रशंसा मुखर .... 23.2.99 जनवरी 99 का अंक प्राप्त हुआ, जिसका काफी समय से इन्तजार था। जैन इतिहास एवं सराक जाति पर आधारित इस चिर प्रतीक्षित अंक में 'सराक' एवं उससे सम्बन्धित सम्पूर्ण जानकारी इस अंक से हासिल हो सकी है। सराक जाति हमारी परम्परा की एक झलक मात्र है। जिन्होंने अत्यन्त कष्ट एवं दुःसह वेदनाओं को सहन करते हुए अपनी परम्परा को सुरक्षित रखा। इसके लिये सराक जाति एवं उसका साहित्य प्रकाश में लाने वाले लेखक एवं सम्पादक महोदय, दोनों ही अभिनन्दनीय हैं। शोधार्थियों के लिये भी यह अंक अत्यन्त उपादेय है । ■ डॉ. (श्रीमती) कृष्णा जैन सहायक प्राध्यापक - संस्कृत शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, लश्कर ग्वालियर 474009 31.3.99 मत अभिमत - - 12.4.99 ■ 'विद्यावाचस्पति' डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव पी. एन. सिन्हा कालोनी, भिखलापहाडी, पटना - 800 006 अर्हत् वचन का वर्ष 11, अंक 1 प्राप्त हुआ जो सराक एवं जैन इतिहास विशेषांक के रूप में है। वैसे तो अर्हत् वचन ने अपने 10 वर्ष के जीवन में 40 अंक प्रकाशित किये हैं एवं अपने पाठकों को सभी क्षेत्रों के विषयों पर अमूल्य सामग्री प्रदान की है, जिसके लिये कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ के सभी कार्यकर्ता, विशेषकर आदरणीय काकासाहब (श्री कासलीवालजी साहब) एवं आप अभिनन्दनीय हैं, परन्तु इस सराक एवं जैन इतिहास विशेषांक प्रकाशित कर अर्हत् वचन ने और भी सराहनीय कार्य किया है जिसके लिये आप एवं आदरणीय काकासाहब बधाई के पात्र हैं। 'सराक 'जाति' के बारे में अभी तक ऐसी कृति प्रकाशित नहीं हुई है, अतः इसका अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार प्रसार होना चाहिये। 80 - 'अर्हत् वचन' का 'सराक एवं जैन इतिहास विशेषांक' देखा । उपाध्याय श्री ज्ञेनसागरजी महाराज का सराकोत्थान के प्रति अप्रतिम योगदान रहा है। इस विषय में उपयुक्त समग्री के प्रकाशन का क्रम बरकरार रखना श्रेयस्कर होगा। ■ डा. गोपीचन्द पाटनी पूर्व विभागाध्यक्ष - गणित एस.बी. 10 जवाहरलाल नेहरू मार्ग, बापू नगर, जयपुर जैनधर्म के बारे में कतिपय पाठ्य पुस्तकों में त्रुटिपूर्ण एवं आधारहीन जानकारियों के प्रकाशन की बात पत्रिका के इस अंक में उठाई, सजगता के लिये धन्यवाद । अस्तु, दुरुस्ती हेतु प्रकाशकों के साथ संवाद ही पर्याप्त नहीं है। ऐसी आपत्तिजनक सामग्री वाले समस्त साहित्य / प्रकाशनों को निरस्त, जप्त किये जाने के अलावा ऐसे लेखकों व प्रकाशकों को 'ब्लैक लिस्ट' किया जाना चाहिये । शासनतंत्र को दायित्व बोध कराने हेतु उच्चतरीय त्वरित कार्यवाही वांछनीय है । कोमलचन्द जैन (पत्रकार) सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी, 1- टी - 35, जवाहरनगर, जयपुर - 4 अर्हत् वचन, अप्रैल 99
SR No.526542
Book TitleArhat Vachan 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size23 MB
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