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समय खर्च किया। सिंहभूमि के कई. भागों में जैन सम्प्रदाय की काफी बस्ती थी।' इनके बनाये ताल, बांघ, पोखरा हैं जिनसे यहाँ के लोग उस समय खेतीबारी करते थे।
उड़ीसा का पुरी जिला - यहाँ के सराक लोगों ने अपनी आजीविका के लिये कपड़ा बुनने का व्यवसाय किया जिससे ये सराकीतांती कहलाये। संदर्भ - 1. बंगाल, बिहार, उड़ीसा के प्राचीन स्मारक, प्रकाशक श्री दि. जैन युवक समिति, कलकत्ता, पृष्ठ 4-51 2. जैन धर्म का प्राचीन इतिहास, बलभद्र जैन, प्रकाशक पं. केशरीचन्द श्रीचन्द चावलवाले, दिल्ली, वी.नि.सं.
2500, पृ. 3601 3. बंगाल, बिहार, उड़ीसा के प्राचीन स्मारक, पृ. 47-48 4. बंगाल, बिहार, उड़ीसा के प्राचीन पृ. 11 5. एसियाटिक सोसायटी बंगाल, सन् 1868, पृ. 35 6. एसियाटिक सोसायटी बंगाल, सन् 1871, पृ. 161-69 7. एसियाटिक सोसायटी बंगाल, सन् 1894, पृ. 179 प्राप्त - 8.8.96
श्रवणबेलगोला के राष्ट्रीय प्राकृत संस्थान को पीएच.डी. उपाधि
के शोध कार्य हेतु मान्यता प्राप्त विश्वप्रसिद्ध गोम्मटेश्वर बाहुबली स्वामी के पादमूल में 2 दिसम्बर 1993 को महामहिम राष्ट्रपति द्वारा द्वादश वर्षीय महामस्तकाभिषेक के पावन अवसर पर उद्घाटित एवं जगदगुरु कर्मयोगी स्वस्ति श्री चारुकीर्ति भट्टारक महास्वामीजी की अध्यक्षता में संवर्धित राष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन एवं संशोधन संस्थान को मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर ने शोध संस्थान के रूप में मान्यता प्रदान की है। कर्नाटक सरकार पूर्व में ही मान्यता प्रदान कर चुकी है।
इस संस्थान में पीएच.डी. उपाधि के लिये प्राकृत, संस्कृत, जैन शास्त्र, पालि, हिन्दी, कन्नड़, दर्शन शास्त्र, धर्मशास्त्र, पाण्डुलिपि - विज्ञान, प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति, स्थापत्य कला, पुरालिपि विज्ञान विषयों में अनुसंधान कार्य की सुविधायें प्राप्त हैं। विविध शास्त्रों के अन्तरंग अनुशासनों पर भी शोध कार्य कराया जा रहा है।
संबंधित विषय में एम.ए. अथवा आचार्य उपाधि में न्यूनतम 55% अंक प्राप्त शोध कार्य के इच्छक छात्र-छात्रायें अपनी अभिप्रमाणित अंक सची के साथ इ संस्था से सम्पर्क कर सकते हैं। विस्तृत विवरण हेतु निदेशक से सम्पर्क करें। इस संस्थान के निदेशक प्राच्य विद्याओं तथा जैन दर्शन के अग्रगण्य विद्वान डॉ. भागचन्द्रजी जैन 'भागेन्दु' हैं। चयनित शोधार्थियों को समुचित सुविधायें / शिष्य वृत्ति प्रदान की जायेंगी।
- वर्धमान डी. उपाध्ये उपनिदेशक - राष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन एवं संशोधन संस्थान,
श्री धवल तीर्थम्, श्रवणबेलगोला - 573135
अर्हत् वचन, अप्रैल 99