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________________ वर्ष - 11, अंक - 2, अप्रैल 99, 59 - 61 अर्हत् वचन (कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर) बलात् धर्म परिवर्तन के स्मारक - सराक - रामजीत जैन* भारत के तीन राज्य पश्चिमी बंगाल, बिहार और उड़ीसा सराक क्षेत्र के नाम से जाने जाते हैं। यहां कौन शाकाहारी है? इसके उत्तर में सबसे पहिले सराकों का नाम आता है। गांव में उनका स्थान श्रेष्ठ माना जाता है, लोग इन्हें भद्र कहते हैं। वे न तो किसी से लड़ाई करते हैं, न झगड़ा, न विवाद। कोई समय था जब इन प्रदेशों में 'णमो अरिहंताणं' और 'चत्तारि मंगलम्' का निर्घोष गूंजता रहा था। इतिहास इस बात का साक्षी है कि जैन तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ और महावीर पूर्वी भारत में उत्पन्न हुए थे, उन्होंने निरन्तर विहार करके अपने दिव्य उपदेशों और प्रवचनों से वहाँ के जन - जन को सद्धर्म की आस्था दी, दीक्षा दी और संस्कार दिये। इन प्रदेशों का आकाश जैन धर्म और जैन तीर्थङ्करों के जय - घोषों से गुंजरित होता रहा। कालान्तर में इन प्रदेशों के पालवंशी राजाओं के धार्मिक उन्माद और अन्य ऐतिहासिक कारणों से बाध्य होकर यहाँ के जनमानस को जैन धर्म त्यागकर हिन्दू धर्म अपनाना पड़ा। इन प्रदेशों में बिखरे हुए सराक, रंगिया, गोप आदि इसी बलात् धर्म परिवर्तन के स्मारक हैं। शताब्दियाँ व्यतीत हो गई लेकिन फिर भी उनमें जैन संस्कार विद्यमान हैं। इन प्रदेशों में अब तक विध्वस्त जैन मंदिर और मूर्तियाँ मौजूद हैं। सरहिया, सेहरिया, सरड़िया, सौहार बाल, सिराग यह सब नाम एक ही जाति के द्योतक हैं केवल नाम भेद प्रतीत होता है। प्राचीन जैन स्मारक (बंगाल, बिहार, उड़ीसा) में लिखा है कि पटना के मानभूमि जिले में एक खास तरह के लोग रहते हैं जिनको सराक कहते हैं। वह मूल में जैनी हैं।' भगवान महावीर का विहार भी यहाँ होना बताया है। लेकिन विशिष्ट बात यह है कि भगवान पार्श्वनाथ का सर्वसाधारण पर यहाँ इतना प्रभाव पड़ा है कि आज भी बंगाल, उड़ीसा में फैले लाखों सराकों, बंगाल के मेदिनीपुर जिले के सद्गोपों, उड़ीसा के रंगिया जाति के लोगों के जीवन व्यवहार में यह देखने को मिलता है। यद्यपि भगवान पार्श्वनाथ को लगभग पौने तीन हजार वर्ष व्यतीत हो चुके हैं और ये जातियाँ किन्हीं बाध्य कारणों से जैन धर्म का लगभग परित्याग कर चुकी हैं, किन्तु आज भी ये जातियाँ पार्श्वनाथ को अपना आद्य कुल देवता मानती हैं। इन जातियों ने अपने आराध्य पार्श्वनाथ के प्रति अपने हृदय की श्रद्धा और आभार प्रकट करने के लिये सम्मेदशिखर का नाम पार्श्वनाथ हिल रख दिया है और अब यही नाम प्रचलित हो गया है। 'सराक' शब्द जैन धर्म में मान्य 'श्रावक' शब्द का अपभ्रंश है। जैन धर्म में श्रावक शब्द का प्रयोग बहुत प्राचीन है। महावीर के अनुयायी गृहस्थ 'श्रावक' कहलाते थे। अभी जैन धर्म में यह शब्द इसी अर्थ में प्रचलित है। राजस्थान में जो 'सरावगी' शब्द चलता है, वह भी श्रावक का ही रूपान्तर है। सराक और सरावगी दोनों ही अहिंसक संस्कृति में आस्था रखते हैं। दोनों अपने का महावीर का अनुयायी मानते हैं। महावीर का जन्म बिहार के कुण्डग्राम में हुआ था। बिहार में पाई जाने वाली सराक जाति अपने को महावीर का वंशज मानती हैं। * एडवोकेट, टकसाल गली, दाना ओली, लश्कर - ग्वालियर - 1 (म.प्र.)
SR No.526542
Book TitleArhat Vachan 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size23 MB
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