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________________ ... वर्ष - 11, अंक - 2, अप्रैल 99, 45 - 50 अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर झांसी के संग्रहालय में संग्रहीत जैन प्रतिमाएँ - सुरेन्द्र कुमार चौरसिया * उत्तर प्रदेश के दक्षिण पश्चिमी छोर पर स्थित झांसी जिला 24' - 11' और 25' - 50' उत्तरी अक्षांश तथा 78 - 10, 79 - 25 पूर्वी देशांश के बीच स्थित है। पहुज तथा वैतवर्ती नदियों के मध्य स्थित झांसी जिले का मुख्यालय झांसी है। इस नगर की स्थापना ओरछा नरेश राजा वीरसिंह देव ने की थी। यह नगर परकोटे के द्वारा सुरक्षित है। 1613 ई. में निर्मित यहां का किला महत्वपूर्ण है। इस जिले का क्षेत्रफल 5024 वर्ग कि.मी. है।' झाँसी नगर का प्राचीन नाम 'बलवंत' नगर था। कालान्तर में इसे झांसी कहा जाने लगा। मान्यता है कि बुन्देल राजाओं की राजधानी औरछा में स्थित जहांगीर महल से झाँसी के किले की छाया अर्थात् झांइ सी दिखाई देती थी, इसलिए इसे "झांइसी" दुर्ग कहा गया, बाद में इस नगर को झांसी कहा जाने लगा।' झाँसी के समीप खैलार, राजापुर, लहर और बड़ागांव में ग्यारहवीं - बारहवीं शताब्दी के कलावशेष प्राप्त हुए हैं। इनके द्वारा सिद्ध होता है कि बलवंतनगर के नाम से झांसी का आधिपत्य मध्यकाल में था। चेदि महाजनपद के अन्तर्गत स्थित झाँसी नगर और उसके आस - पास का भू - भाग प्राग ऐतिहासिक तथा आद्यऐतिहासिक मानव के निवास का क्षेत्र रहा है। संग्रहालय परिचय - झांसी नगर में एक शासकीय संग्रहालय है। इसके अतिरिक्त रानी महल झांसी में आस - पास के क्षेत्रों से एकत्र की गयी कुछ प्रतिमाएं संग्रहीत हैं। रानी महल केन्द्रीय पुरातत्व विभाग का संरक्षित स्मारक है। सन् 1978 में झाँसी का पुरातत्व संग्रहालय संस्कृत विद्यालय के भवन में प्रारंभ हुआ। मार्च 1992 में किले के निकट स्थित महारानी लक्ष्मीबाई पार्क के समीप नवनिर्मित भवन में संग्रहालय स्थानांतरित किया गया। संग्रहालय की स्थापना और व्यवस्था में तत्कालीन संग्रहालयाध्यक्ष डा. एस.डी. त्रिवेदी का योगदान उल्लेखनीय है। वर्तमान संग्रहालय भवन आयाताकार है। भवन में कुल 16 यूनिट हैं। भवन में एक विशाल कक्ष और 6 गैलरी हैं। राजकीय संग्रहालय में ब्राह्मण, जैन तथा बौद्ध धर्मों से संबंधित देवी - देवताओं, पशु-पक्षियों की कुल 556 पाषाण प्रतिमाएं हैं। इनके अतिरिक्त 361 मृण्मूर्तियां, 44 कांस्य प्रतिमाएं, 144 पेंटिंग, 61 पाण्डुलिपियां और 8799 मुद्राएं हैं। संग्रहीत मुद्राओं में 41 स्वर्ण, 1019 रजत, 21 मिश्रित धातु तथा 7682 ताम्र मुद्राएं हैं। इनके अतिरिक्त प्राचीन और मध्यकालीन अस्त्र-शस्त्र की संख्या 89 हैं। संग्रहालय में केवल एक शिलालेख है। इसके अतिरिक्त एरच से प्राप्त दाममित्र अंकित ईट का टुकड़ा भी संग्रहालय में है। विवेच्य क्षेत्र में प्राप्त जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं सीरोन, खुर्द, देवगढ़, जालौन, दुघई, चांदपुर से प्राप्त हुई जिनका संग्रह राजकीय संग्रहालय * शोध छात्र, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, डॉ. हरिसिंह गौर वि.वि., सागर-470003 (म.प्र.)
SR No.526542
Book TitleArhat Vachan 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size23 MB
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