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________________ विनती स. 1488) 10. ज्वाला मुखी तीर्थ पर जैन प्रतिमा होने का प्रमाण श्वे. जैन आचार्य श्री जयसागरोपाट्याय कृत्चेत्य परिपाटी (समय विक्रम संवत् 1500 के लगभग) में मिलता है। 11. इस नगरकोट षमुकरव ठाणेहि जय जिणभइ वंदिया, ते वीर लउंकड देवी जाल मुखिय मन्नई वंदिया। अर्थात - यह कांगडादि क्षेत्रों में मैंने जिनेश्वरों भगवान की प्रतिमा को नमस्कार करते समय इस क्षेत्र में वीर लकुंड और देवी ज्वालामुखी की मान्यता भी देखी। 12. इन्द्रेश्वर मंदिर से प्राप्त जैन प्रतिमा का शिलालेख पाठ - (1) ओम् संवत् 30 गच्छे राजकुले सुरि भू च (द) (2) भयचन्द्रः [1] तच्छिप्यो (5) मलचन्द्राख्य [स्त] (3) पदा (दां) भोजषटपद: [2] सिद्दराजस्तत: ढङ्ग (4) ढडखगादजनि [ल] प्यक। रल्हेतिगृहिणी त] (स्य) या - धर्म - यायिनी। अजनिष्ठा सुतौ (6) [तस्य], [जैन] धर्म ध (प) रायणौ! ज्येष्ठो - कुंडलको (7) [भ्रा] [त्ता] कनिष्ठ: कुमाराभिद्यः। प्रतिमेयं [च] [7 - जिन 1 नुज्ञया कारिता [11] डा वुल्नहर ऐपीग्राफी इंडिया। ओम संवत् 1296 वर्षे फाल्गुन वदि 5 खौ कीखामे ब्रह्म-क्षत्र गोत्रोपन्न व्यय, भानु पुत्रांम्यो व्यंव्दोल्हण आलहणाभ्या स्वकारित श्री मन्महावीर जैनचैत्य श्री महावीर जिनबिम्ब आत्म श्रेयों (थे) कारित। प्रतिष्ठितं च श्री जिन वल्लभ सूरि संतानीय रूद्रपल्लीय श्रीमद भयदेव सूरि शिष्य श्री देवभद्र सुरिभि। (एपीग्राफीया इण्डिया भाग एक पृष्ठ 118 संपादक डा. वुल्हर) प्राप्त - 22.3.99 अर्हत् वचन पुरस्कार (वर्ष 10- 1998) की घोषणा कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर द्वारा मौलिक एवं शोधपूर्ण आलेखों के सृजन को प्रोत्साहन देने एवं शोधार्थियों के श्रम को सम्मानित करने के उद्देश्य से वर्ष 1989 में अर्हत् वचन पुरस्कारों की स्थापना की गई थी। इसके अन्तर्गत प्रतिवर्ष अर्हत् वचन में एक वर्ष में प्रकाशित 3 श्रेष्ठ आलेखों को पुरस्कृत किया जाता है। वर्ष 10 (1998) के 4 अंकों में प्रकाशित आलेखों के मूल्यांकन हेतु एक त्रिसदस्यीय निर्णायक मंडल का निम्नवत् गठन किया गया था1. डॉ. एन. पी. जैन, पूर्व राजदूत, ई-50, साकेत, इन्दौर 2. प्रो. सरोजकुमार जैन, पूर्व प्राचार्य एवं प्राध्यापक - हिन्दी, मनोरम, 37 पत्रकार कालोनी, कनाड़िया रोड, इन्दौर 3. प्रो. सी. एल. परिहार, प्राध्यापक - गणित, होल्कर स्वशासी विज्ञान महाविद्यालय, इन्दौर निर्णायकों द्वारा प्रदत्त प्राप्तांकों के आधार पर निम्नलिखित आलेखों को क्रमश: प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कार हेतु चुना गया है। ज्ञातव्य है कि पूज्य मुनिराजों/ आर्यिका माताओं, अर्हत् वचन सम्पादक मंडल के सदस्यों एवं विगत पाँच वर्षों में इस पुरस्कार से सम्मानित लेखकों द्वारा लिखित लेख प्रतियोगिता में सम्मिलित नहीं किये जाते हैं। पुरस्कृत लेख के लेखकों को क्रमश: रुपये 5001/-, 3001/- एवं 2001/- की नगद राशि, प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह से निकट भविष्य में सम्मानित किया जायेगा। प्रथम पुरस्कार - 'नेमिचन्द्राचार्य कृत ग्रन्थों में अक्षर संख्याओं का प्रयोग', 10 (2), अप्रैल - 98, पृ. 47-59, श्री दिपक जाधव, व्याख्याता - गणित, जी-1, माडल स्कूल कैम्पस, बड़वानी- 4515511 द्वितीय पुरस्कार - "दिगम्बर जैन आगम के बारे में एक चिन्तन', 10(3), जुलाई-98, पृ. 35 - 45, प्रो. एम. डी. वसन्तराज, 66, 9 वाँ क्रास, नवेलु रास्ते, कुवेम्पुनगर, मैसूर (कर्नाटक) aritu garant - 'Epistemology in the Jaina Aspect of Atomic Hypothesis', 10(3), July-98, pp 29-34, Dr. Ashok K. Mishra, Dept. of History, Culture and Archaelogy, Dr. R.M.L. Avadh University, Faizabad-224001 देवकुमारसिंह कासलीवाल डॉ. अनुपम जैन अध्यक्ष सचिव अर्हत् वचन, अप्रैल 99
SR No.526542
Book TitleArhat Vachan 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size23 MB
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