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निकली थी। समाचार पाते ही हम कैमरा लेकर वहां पहुंचे। प्रतिमाओं को साफ किया गया। सफेद संगमरमर की प्रतिमाएं थी, किसी बड़े मंदिर की मूर्तियाँ थी, क्योंकि मूलनायक की इतनी बड़ी प्रतिमा पंजाब में और कहीं भी नहीं मिली। उसका शिलालेख वीर पाव पूरिया से शुरू होता था । हमने उसका अर्थ वीर निर्वाण संवत लगाया है। चिन्हों के आधार पर इसे भगवान नेमिनाथ की प्रतिमा घोषित किया गया। विशाल प्रतिमा परिकर युक्त सफेद संगमरमर की है। साथ में श्री संभवनाथ भगवान की प्रतिमा प्राप्त हुई है एक जिनकल्पी मुनि की प्रतिमा तीर्थंकर सादृश्य है पर उसके कंधे पर छोटा सा वस्त्र है। सामने रजोहरण पड़ा है। ये प्रतिमा श्वेताम्बर परम्परा की है। आजकल यह धरोहर पटियाला स्थित सरकारी म्यूजियम मोती बाग में है।
24. मात श्री चक्रेश्वरी तीर्थ
यह क्षेत्र सरहिंद में पड़ता है। विशाल जंगल में भगवान ऋषभदेव की शासनदेवी चक्रेश्वरी माता स्थापित है। ऐसी किंवदन्ती है कि 8-9वीं सदी में कुछ तीर्थयात्री कांगड़ा जा रहे थे, उनके पास यह प्रतिमा थी । यह यात्री खण्डेलवाल जाति के थे, जो मध्यप्रदेश से आए थे। माता के आदेशानुसार ये इसी क्षेत्र में बस गए। माता का मंदिर पिण्डी रूप में स्थापित किया गया, जो आज भी विद्यमान है। आज यह क्षेत्र खण्डेलवालों तक ही सीमित नहीं, बल्कि जैन अजैन सभी की आस्था का केन्द्र है, सरहिंद युद्धों का क्षेत्र रहा है बन्दासिंह बहादुर ने यहां की ईंट से ईंट बजा दी थी। युद्ध क्षेत्र में भी माताजी । का भवन सुरक्षित है। पास में चमत्कारी जलकुण्ड है, जिस में पानी खत्म नहीं होता, इसे अमृत कुण्ड कहा जाता है।
इस प्रकार प्राचीन पंजाब का पुरातत्व बहुत ही विस्तृत था हर काल में यहां जैन धर्म किसी न किसी रूप में विद्यमान रहा। हमने यथा बुद्धि प्राचीन पंजाब के पुरातत्व क्षेत्रों का वर्णन किया है। कई म्यूजियमों में बाहर से लाई जैन प्रतिमाएँ हैं, उनका पंजाब से कोई सम्बन्ध नहीं, इसलिए वर्णन नहीं किया गया।
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सदर्भ स्थल
1. कणगखल णाम आसम पद दो पंथा उज्जुओ य वंकोप जो सो उज्जुओ सो कणगखल मज्झिण वच्चति वंको परिहरंतो सामी उज्जुएण पधाइतो आवश्यकचूर्णि 278. ( कणखल आश्रम पद को पहुंचने के
दो रास्ते हैं। एक सरल दूसरा लम्बा। दोनों रास्ते कणखल आश्रम ( हरिद्वार) जाते थे। प्रभु महावीर ने छोटा रास्ता छोड़ लम्बा रास्ता ग्रहण किया। आज भी यह रास्ता पहाड़ी दुर्गमताओं से भरा पड़ा है।
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2. भगवती सूत्र 25 / 33-6
3. भगवती सूत्र
4. विपाक सूत्र, अध्ययन - 9, द्वितीय श्रुत स्कन्ध
5. भिखराज महामेघवाहन खारवेल के शिलालेख के अंश
क. (1) नमो अरहतानं (1) नमो सवसिधानं (1) ऐरेन महाराजेन महामेघवाहनेन चेतराजवस वघनेन
पसथ सुभ लखनेन चतुरतल थुनगुनो पहितेन कलिंगाधिपतिना सिरि खारवेलेन ।
(2) मंडे च पुर्व राजनिवेसित
पीथड़ग द (ल) भ नंगले नेकासयाति जनपद भावनं च तेरस वस सत कुतभद - तितं मरदेह संघातं (1) वारसमे च वसै सेहि वितासयति उतरापथ राजानो ।
6. राजतरंगनी (1101 102 103 ) (4-202)
7. भागवत, विष्णु, वायु, पद्म आदि सभी पुराणों में भगवान ऋषभ का उल्लेख है।
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8. कुमारपाल प्रबोध प्रबन्ध के अनुसार राजा कुमारपाल ने अपने देशों में जैन धर्म को राज्य धर्म घोषित किया । पूर्ण अहिंसा का पालन करवाया। जन हित कार्य मंदिर बनवाये ।
अत्रापि पपादलक्षदानम्। ततः पश्चादागच्छन द्वारिकासन्नं केनापि विक्षप्तः देवात्र कृष्णराजो दलिनिकन्दनो राज्यमकरीत् । तत्र देवदाये द्वादश ग्रामान वदौ अयोत्तरा प्रति प्रतस्थे तत्र काश्मीरोड्डुयान
जालन्धर
सपादलक्ष पर्वत - खसादि देशानां हिमाचलम्साघयत् ।
9. (क) वारह नेमिसर तणए थपिथ राय सुसरमि। आदिनाह अंबिका, सहिये, कंगड़कोट सिहरमि ॥ ( नगरकोट
अर्हत् वचन,
अप्रैल 99
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