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________________ वर्ष - 11, अंक - 2, अप्रैल 99, 37 - 44 अर्हत् वचन । प्राचीन पंजाब का जैन पुरातत्व कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर) -पुरुषोत्तम जैन एवं रवीन्द्र जैन* जैन इतिहास में प्राचीन पंजाब की सीमा जब हम पंजाब की बात करते हैं तो इस का अर्थ सप्तसिन्धु प्रदेश वाला पंजाब है। क्योंकि पंजाब नाम मुस्लिम शासकों की देन है। प्राचीन काल से ही पंजाब की कोई भी पक्की सीमा नहीं रही। सप्तसिन्धु प्रदेश भगवान महावीर के समय छोटे-छोटे खण्डों में बंट गया था। जिनमें कुरू, गंधार, सिन्धु, सोविर, सपादलक्ष्य, मद्र, अग्र, काश्मीर आदि के क्षेत्र प्रसिद्ध थे। तीर्थंकर युग में प्रथम तीर्थंकर भगवान श्री ऋषभदेव के छोटे पुत्र बाहुबली की राजधानी तक्षशिला थी। 16वें तीर्थंकर शांतिनाथ जी, 17 वें तीर्थंकर श्री कुंथनाथजी, 18 वें श्री अरहनाथजी का जन्म स्थान कुरू देश की राजधानी हस्तिनापुर में है। इनके अतिरिक्त दिगम्बर जैन साहित्य में तीर्थंकर मल्लिनाथ, भगवान पार्श्वनाथ व भगवान महावीर का सप्तसिन्धु क्षेत्रों में पधारने का वर्णन उपलब्ध है। जैन तीर्थंकरों ने जनभाषा को प्रचार का माध्यम बनाया। भगवान पार्श्वनाथ ने बहुत समय काश्मीर, कुरू व पुरू देशों में भ्रमण किया। इस क्षेत्र का एक भाग अर्थ केकय कहलाता था। भगवान महावीर ने अपने साधुओं को इस देश तक भ्रमण करने की छूट दी थी। क्योंकि भगवान महावीर के समय में आर्य व अनार्य देशों के रूप में इस क्षेत्र का विभाजन हो चुका था। आर्य क्षेत्रों में साधु-साध्वी को मर्यादा अनुसार भोजन मिलता था। इन आर्य क्षेत्रों को भगवान महावीर ने स्पर्श का सौभाग्य प्रदान किया। इसका वर्णन हमें श्वेताम्बर ग्रन्थ आवश्यक चूर्णि, आवश्यक नियुक्ति आदि में मिलता है। वह थूनांक (स्थानेश्वर) सन्निवेश पधारे थे। शायद यह मार्ग उन्होंने उत्तरप्रदेश के कनखल हरिद्वार मार्ग के माध्यम से पूर्ण किया हो।' श्री भगवती सूत्र के अनुसार प्रभु महावीर सिन्धु के नरेश उदयन की प्रार्थना पर लम्बा विहार करके वीतभय पत्तन पधारे थे। प्रभु ने वहाँ चातुर्मास किया एवं राजा को दीक्षित किया। वापसी में अर्ध केकय देश में घूमते हुए कश्मीर, हिमाचल की धरती से मोका नगरी पधारे। धर्म प्रचार करते हुए प्रभु महावीर वापसी पर रोहितक नगर पधारे।' इन बातों का वर्णन श्वे. जैन आगमों में यत्र - तत्र मिल जाता है। जिन क्षेत्रों का ऊपर वर्णन किया गया है वे क्षेत्र वर्तमान पंजाब, हरियाणा, सिंध, पाकिस्तान, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, देहली, उत्तर - प्रदेश में पड़ते हैं। भगवान महावीर के बाद सप्तसिन्धु प्रदेश में जैन धर्म की स्थिति बहुत अच्छी रही, जिसका प्रमाण हमें मौर्य एवं नंद राजाओं द्वारा जैन धर्म को ग्रहण करने में मिलता है। मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य को सारे भारत पर साम्राज्य करने का सौभाग्य मिला। जैन ग्रंथों में चन्द्रगुप्त मौर्य व इसी वंश के अन्य सम्राटों के बारे में विपुल सामग्री उपलब्ध होती है। सम्राट चन्द्रगुप्त ने तो जीवन के अन्त में मुनिधर्म ग्रहण किया था। यद्यपि अशोक बद्ध धर्म को मानता था, पर उसके प्रत्येक शिलालेख में जैन धर्म का प्रभाव उपलब्ध है। देहली के शिलालेख में भी निर्ग्रन्थ, ब्राह्मण, नियतिवादी व श्रमणों (बौद्धों) को एक साथ संबोधित किया गया। जैन धर्म की परम्परा के अनुसार राजा सम्प्रति ने जैन धर्म का प्रसार समस्त * विमल कोल डिपो, पुराना बस स्टेण्ड के सामने, मालेरकोटला (पंजाब)
SR No.526542
Book TitleArhat Vachan 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size23 MB
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