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________________ पर कुछ नारियों ने पति के पश्चात राज्य संभालकर स्त्रियों में जागृति पैदा की जो कि उनके उत्पीड़न को नियंत्रण में रखने में सहायक सिद्ध हुई। बहुविवाह - मौर्योत्तर युगीन में बहुविवाह से सम्बन्धित कई नियम प्रतिपादित हो गए थे जैसे यदि पति दूसरा विवाह करना ही चाहे तो प्रथम पत्नी की सम्मति लेकर ही कर सकता था। 29 मनु भी द्वितीय विवाह की अनुमति तब देते हैं जब प्रथम स्त्री अप्रियवादनी, वंचिका, अपव्ययकारिणी, रोगिणी, कुलटा एवं मधपा हो। 30 किन्तु पत्नी को अपना द्वितीय विवाह करने का कोई अधिकार नहीं था। पति चाहे जैसा हो पत्नी के लिए पति का स्थान देवता के तुल्य होता था। 1 केवल विधवा एवं परित्क्गता स्त्री ही पुनर्विवाह कर सकती थी। मनु स्मृति में पुनर्भ शब्द का अनेक बार प्रयोग हुआ है। 2 अतएव सती प्रथा का प्राय: अभाव हो गया था। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि बहुविवाह होते थे मगर जिन परिस्थितियों में पति दो विवाह कर सकता था, निश्चित ही उन स्थितियों में कोई भी स्त्री अपने पति को अन्य विवाह करने की सम्मति नहीं दे सकती थी। अतएव निश्चित ही प्रत्येक मामले में पत्नी की सम्मति प्राप्त नहीं हो पाती होगी, जो कि पत्नी के साथ उत्पीड़न का कारक थी। वहीं पर परिव्यक्ता एवं विधवा विवाह का प्रचलन उसे सती होने से रोकने में मददगार हुआ तथा उसके उत्पीड़न का मुख्य स्रोत बन्द होता गया। विवाह विच्छेद, नियोग एवं वेश्याएँ - इस काल में विवाह विच्छेद के भी कुछ नियम थे। पति सिर्फ अशीलवती पत्नी को ही छोड़ सकता था। इसी प्रकार मनु केवल उसी दशा में पति परित्याग की अनुमति देते है जब पति पतित हो। इसी तरह मनु नियोग प्रथा के भी विरोधी थे। 4 वेश्याओं को अधार्मिक, पापिनी मानते हुए मनु ने वेश्याओं को दण्ड देने का विधान भी प्रस्तुत किया। 35 उपरोक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि पति एवं पत्नी को विशेष परिस्थितियों में विवाह विच्छेद करने के समान अवसर प्राप्त थे। इसी तरह वेश्यावृत्ति पर नियंत्रण किया जाना स्त्रियों को समुचित सम्मान दिये जाने का प्रतीक है निश्चित ही ऐसी परिस्थितियों में स्त्रियों का उत्पीड़न कम हआ होगा। संदर्भ ग्रन्थ सूची मौर्य काल में पत्नी उत्पीड़न - 1. शास्त्री नीलकण्ठ, नन्द मौर्य युगीन भारत, भूमिका, पृ. 11 2. अवस्थी शशि, प्राचीन भारतीय समाज, बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, 1981, पृ. 321 - 322 । 3. वही 4. विष्णु पुराण ततश्च नवचैतान्नन्दान् कौटिल्यो ब्राह्मण: समुदरिष्यति तेषामभावे मौर्या: पृथ्वी मोक्ष्यन्ति। कौटिल्य एवं चन्द्रगुप्त मुत्पन्न राज्यभिषेक्ष्यति। 5. Mukharjee, Radhakumuda, Chandragupta and his Times, "He figures as the first historical emperor of India in the sense that he is the earliest emperor in Indian history, whose historicity can be established on the solid ground of ascertained chronology". 6. Rai Chaudhary, Hemchandra, Political History of Ancient India, 6th ed. P. 270. With an army of six hundred thousand men, (chandragupta) overran and subdued all India". 7. कौटिल्य, 3.21 8. कौटिल्य 3.6.1 अर्हत् वचन, अप्रैल 99 23
SR No.526542
Book TitleArhat Vachan 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size23 MB
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