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________________ मौर्योत्तर काल में पत्नी उत्पीड़न - ___ मौर्य युग में भारतीय समाज बौद्ध विचारधारा से प्रभावित था एवं उसकी समस्त सारणियां बौद्ध नियमानुसार ढल गई थी, किन्तु मौर्य युग के पतनकाल से वैदिक परम्पराएं अपने नए रूपों में ढलने लगी। जैसे मनु ने सर्वाधिक महत्व गृहस्थाश्रम को दिया था। इसका कारण था कि मनु निवृत्तिमार्गी हिन्दू धर्म के पोषक थे, निवृत्तिमार्गी बौद्ध एवं जैन धर्म के विरोध में मनु ने गृहस्थाश्रम पर अधिक बल दिया था। गृहस्थाश्रम ही एक ऐसा आश्रम था जिस पर अन्य तीनों आश्रमों का जीवन निर्भर रहता है। 17 कन्या - पुत्री पुत्र के समान ही समाज में प्रतिष्ठित स्थान पाती थी। 18 परन्तु मनु ने सिद्धान्तत: पत्री को पत्र से निम्न स्थान दिया था। 19 मन ने बाल विवाह पर पर्याप्त बल दिया था एवं यह माना था कि यौवनावस्था की प्राप्ति के तीन वर्ष पश्चात तक कन्या अविवाहित रखी जा सकती है। 20 यहाँ तक की मनु ने यह भी विधान रखा था कि उपयुक्त वर के अभाव में कन्या आजीवन अविवाहित रह सकती है। 21 मनु के अनुसार कन्या का विवाह वेदाध्ययन विरत, संस्कारहीन एवं रोगी घराने में नहीं करना चाहिए। 22 कन्याओं का बाल विवाह होने के कारण उपनयन संस्कार लुप्तप्राय हो गए थे। अत: मनु के विचार से कन्या को गृहकार्य की ही शिक्षा दी जानी चाहिए। अतएव कहा जा सकता है कि बौद्ध धर्म के प्रभाव कम होने तथा ब्राह्माणों का प्रभाव पुनस्र्थापित होने के इस संक्रमण दौर में मिली जुली सभ्यता का आभास परिलक्षित होता है। यह बात इस तरह से स्पष्ट होती है कि जहाँ पर पूर्व मौर्यकाल में स्त्री शिक्षा का महत्व था वही पर ब्राह्माणों द्वारा मौर्योत्तर काल में स्त्री शिक्षा पर जोर नहीं दिया गया एवं उनके केवल गृहकार्य की शिक्षा पर जोर दिया गया। इस तरह से उनको वैदिक शिक्षा से वंचित किए जाने के परिणाम स्वरूप स्त्री की महत्ता में कमी आई जो कि उसके उत्पीड़न का स्रोत बनी। पत्नी - तदयुगीन समाज में स्त्रियों की स्थिती सम्मानीय थी। मनु की दृष्टि में जिस घर में नारी की पूजा होती है अथवा उसका सम्मान होता है, वहीं पर लक्ष्मी का निवास होता है। 23 वहीं इसके विपरीत नारी के प्रति हीन एवं नारी पराधीनता के विचार भी मिलते हैं। जैसे मनु की दृष्टि में स्त्री के साथ बैठकर भोजन नहीं करना चाहिए। 24 नारी अबला होने के कारण बाल्यावस्था में पिता के, यौवनावस्था में पति के एवं वृद्धावस्था में पुत्र के संरक्षण में रहती है। 25 मनु के अनुसार पत्नी की समस्त सम्पत्ति पति की सम्पत्ति होती है। 26 इस कारण तयुगीन समाज में स्त्रियों को आर्थिक स्वतंत्रता भी नहीं थी। वेद युगीन नारी शिक्षा का क्रम ईसा की प्रथम शताब्दी तक शनैः शनैः कम पड़ता गया। स्त्रियों की परम शिक्षा एवं धर्म उनकी पति सेवा एवं गृह कार्य तक ही सीमित रह गए थे। 7 परन्तु इसके अपवाद शातर्कीण प्रथम के मृत्यु उपरान्त उसकी पत्नी ने ही तब तक शासन संभाला था जब तक कि उसके पत्र बालिग नहीं हो गये। इसके अतिरिक्त नायनिका, गौतमी, बालश्री आदि स्त्रियों ने भी शासन कार्य में सुचारू रूप से भाग लया था। नायानिका के नानाघाट अभिलेख से स्पष्ट होता है कि नारियाँ अश्वमेघ यज्ञ में भी भाग लेती थी। अतएव कहा जा सकता है कि मौर्योत्तर युगीन समाज में स्त्रियाँ शिक्षिता एवं कुशल तो होती थीं परन्तु विदुषी एवं अतिशिक्षिता नहीं हो पाती थीं। इसी तरह उनकी आर्थिक परतंत्रता एवं पुरुष पर निर्भरता उन्हें उत्पीड़ित होने के लिये मार्ग प्रशस्त करती थी। वहीं अर्हत् वचन, अप्रैल 99 22
SR No.526542
Book TitleArhat Vachan 1999 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year1999
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size23 MB
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