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श्रुतसागर
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नवम्बर-२०१९
गुजराती माटे देवनागरी लिपि के हिन्दी माटे गुजराती लिपि?
हिन्दवी (गतांकथी आगळ..)
संस्कृत भणता गुजरातीओ देवनागरी लिपि (प्राथमिक शाळामां के घेर नहीं तो) हाईस्कूलमां पेसतां शीखे छे। निशाळे जता बधा ज गुजरातीओ आ सहेली रीते देवनागरी लिपि तो शीखी जाय, पछी गुजराती चोपडी के छापां ए डपकाशाई वधु खर्चाळ लिपिमां छापवानी शी जरूर, ए उपाय के योजना शो वधारे लाभ खटवी आपे वारु? __ बीजो विचार आ प्राप्त थाय छे के गुजराती चोपडी छापां देवनागरीमां छापीए अथवा हिन्दी चोपडी छापांमांथी केटलांक गुजराती लिपिमा छापिए, ए बे पर्यायमांथी हिन्दी ज्ञान गुजरातीमां वधारवाने माटे म्हने तो पहेला करतां बीजो वधारे व्यवहारु जणाय छे । वळी ऐक्य वधारवा माटे बनतुं करवानी फरज छे तो ते एकला गुजरातीओनी थोडी ज छे।
हिन्दी भाषा पथरायेली छे ते विशाळ प्रदेशना वतनीओने माथे पण ए फरज जरा पण ओछी ना गणाय, ए कोट्यवधि जनता पोतानी फरजने अनुरूप कशुं ना करे तथापि आपणे गुजरातीओए तो करी छूटवू, ए तो आकळापणुं कहेवाय । एओ केटलांक हिन्दी पुस्तक छापां गुजराती लिपिमां छापे अने आपणे केटलांक गुजराती पुस्तक छापां देवनागरीमा छापीए, एम साथे साथे सहकारमा प्रवृत्ति चाले तो बेवडी शोभे अने कदाच विशेष लाभदायी पण नीवडे । जो के आम पण म्हने तो उपर आवी गयेलो रस्तो वधारे व्यवहारु लागे छे।
आपणी वाचनमालामां जेम देवनागरीनो परिचय आपीए तेम एमनी हिन्दी वाचनमालामां गुजराती लिपिनो आपवामां आवे, ए बेवडो मार्ग ज म्हने तो सौथी वधारे रुचे।
हिन्दी वाचनमालामां लिपिनो समास मागीए तो (मराठीनो सवाल छे नहीं एटले) बंगाळी लिपिने पण स्थान मळवू जोईए, एवी मागणी सामे पण कशो वांधो देखातो नथी।
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