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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR July-2019 कवी(वि)त्त- गुंथी गजल गयंद आण मितरें(?) अनुसारे, विध विध छोज विणा(ण)य ध्यान सदगुरु सो धारे, देवल छोज अनेक हद्द विहद्द वखांणी, थंभ तीन छै च्यार काम बहू अधिको जाणी, पार्श्व वरकांण तुंठो वली ध्यांन एक चित्त मै धरी, विजय अविचल सुपसा(य)थी नवी जोड नित्ये करी ॥६१(६२)॥ श्री विजैजिनेंद्रसूरि ईस तपगछ रो आखां, श्रीविजैजिनेंद्रसूर ल(ग)यण-वृंद कीरत लाखां", श्रीविजैजिनेंद्रसूरि दाखीयै जिनधर्म दीवो, श्रीविजय(जै)जिनेंद्रसूरि युगोयुग च(चि)रंजीवो, करजोड एम नेतसी वदे ईस्या वेण आसीस रा, जिहां लगे चंद्र सूरने जलधि जिनेंद्रसूर प्रतपै धरा ॥६२(६३)॥ संवत अढारे सोय वरस एकताल (१८४१) अखीजै, पोस मास सुमास दिन दशमी भखीजै, वार भोम वली जाण काम बहू श्रु(सु)क्रत कीधो, पायो दरसण पास लाहो लछमीनो लीधो, लघु स्तुति इसडीक पारसनाथ पोते मिल्यो, एक शुध(द्ध) धणी धा(ध्या)वतां कल्पवृक्ष आंगण फि(फ)ल्यौ ॥६३(६४)।। ॥इति श्रीवरकाणां पार्श्वनाथजी री गज्जल सम्पूर्णं ॥ ॥लिखतं पं. लावण्यसागरेण बुधीनगरे ॥ १८५७ दुतिय येष्ट वदि ४ रात्रौ ॥ ७८. ?, ७९. वयण, ८०. एवी. न जात लाभ कल रूप तप, बल विद्या अधिकार। इनकौ गरव न कीजीयै, ए मद आठ प्रकार ॥ प्रत क्र.-१२८४२८ भावार्थ:- मद आठ प्रकार के हैं – जाति, लाभ, कुल, रूप, तप, बल, विद्या Lऔर अधिकार । अतः इनके ऊपर मनुष्य को कभी गर्व नहीं करना चाहिए। For Private and Personal Use Only
SR No.525348
Book TitleShrutsagar 2019 07 Volume 06 Issue 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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