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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18 जुलाई-२०१९ ॥५१॥ ॥५२॥ ॥५३॥ ॥५४॥ ॥५५॥ श्रुतसागर हाथां हद्द बीजोराक्, कड्यां(ट्यां) दीपें कंदोराक् । कडा हाथ में अडीयाक्, निरमल नंग ही जडीयाक् सवैया- नाम निरंजण हे जिनराज कौ नाम लीयां नवै निधि मले है, नांमथी मान वधे बिमणा ईत भीत सवी(वि) दुख दूर टले है, वांमा है मात वांणारसी नाथ आवै सहू यात्र सो आस फल है, प्रात समै नित्य उठकै साहिब पार्श्वजिणंद के पाय लुलै है दहो- जनम-महोछव वर्णवं, सांभलज्यौ चित्त लाय। गांम ठांम माता पिता, लंछण सर्प सवाय वांणारसी नगरी भली, जनम यो प्रभु पास। अश्वसेन घर अवतर्या, विजि दशमी पोस मास धन वामा तुझ कुंखने, जनम्या पासकमार। प्रथवी में प्रगट्यौ इसौ, आतमनौ आधार विचरंता तिहां आवि(वी)या, धन गोढाणा देश । प्रगट हूया नगरी कसा, दादा-वसही कहेक(स) धन वीझेवा संघने, प्रणम्या पारसनाथ। अनमी नर अलगा कीया, हठ भांज्या बहु बाथ प्रगट्यौ प्रथवी तारवा, कु(क)लयुग कहणी कीध। पवन छत्रीसै फरसनी, तुझ वांद्या निवि(नव) निध चाल- महीना पोस हे प्याराक, दशमी दिन हे साराक् । दुनीयां बहोत ही आवी(वे)क्, मेलां खुब बनावेक् हट्टाथट्ट हजाराक्, दीपें मस्त बजाराक् । थरमा पटु ही लेवैक्, मांग्या मोल भी देवैक् मुनिजन मस्त ही मलीयाक्, हीयडा हर्षस्यै(स) खुलीयाक् । दादा पासकुं गायाक्, अनघल लछमी पायाक् ॥५६॥ ॥५७|| ॥५८॥ ॥५९॥ ॥६०॥ ॥६०(६१)। ७१. संदर, मनोहर, ७२. बीजोरं, ७३. उपद्रव, ७४. विजय, ७५. न नमनार, अक्कड, ७६. एक जातवें कापड,७७. वस्त्र (?), For Private and Personal Use Only
SR No.525348
Book TitleShrutsagar 2019 07 Volume 06 Issue 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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