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श्रुतसागर
फरवरी-२०१९ पुस्तक समीक्षा
राहुल आर.त्रिवेदी पुस्तक नाम - अचलगच्छीय ऐतिहासिक रास संग्रह संकलन कर्ता - श्री पार्श्व (श्रीपासवीर धुल्ला “पार्श्व”) सह संपादक - श्री सर्वोदयसागरजी म.सा., श्री उदयरत्नसागरजी म.सा. प्रकाशक - अचलगच्छ जैन संघ ट्रस्ट, सुरत प्रकाशन वर्ष - आवृत्ति-- कुल पृष्ठ - २६+४+५५६=५८६ मूल्य भाषा - गुजराती
दुनिया की सभी संस्कृतियों में भारतीय संस्कृति प्राचीनतम है। इस संस्कृति की धरोहर का जतन करने में जैन साहित्य का अमूल्य योगदान रहा है। आगमकाल से लेकर वर्तमान समय तक जैन विद्वानों के द्वारा अत्यधिक मात्रा में साहित्य की रचनाएँ हुई हैं। वे साहित्य गद्य-पद्यरूप अनेक प्रकारों में पाये जाते है। उनमें प्रबंध, व्याख्यान और रास का प्रमाण अधिक रहा है। देशी कृतियों में रास' प्रकार की जैन कृतियाँ विशेषरूप से पाई जाती हैं। इस विषय में अचलगच्छीय विद्वानों का योगदान उल्लेखनीय है। अचलगच्छीय विद्वानों के द्वारा ‘रास' प्रकारबद्ध कृतियों के संग्रहरूप पुस्तक प्रकाशित हुई है, जिसका नाम “अचलगच्छीय ऐतिहासिक रास संग्रह है। इस पुस्तक के संपादक श्री पार्श्व के द्वारा पूर्व में “अचलगच्छ लेख संग्रह” नामक एक पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। पुनः उनके मन में सभी अचलगच्छीय विद्वानों के द्वारा रचित रास कृतियों को एकत्र करने की इच्छा हुई किंतु संयोगवशात् कार्य अधूरा रहा। अंततः इस कार्य को मुनि श्री सर्वोदयसागरजी म.सा. और मुनिश्री उदयरत्नसागरजी म.सा. ने सहयोग देकर सुसंपन्न किया।
पुस्तक के प्रारंभ में संकलन कर्ता ने विद्वानो के द्वारा रचित जैन ऐतिहासिक रासों से सम्बन्धित विशिष्ट साहित्य का विस्तृत परिचय तथा संकलनादि कार्य में सहयोगी विद्वानों तथा ज्ञानभंडारों का उल्लेख किया है। इस ग्रंथ को सात खंडों में अलग-अलग
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