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SHRUTSAGAR
February-2019 विषयों के साथ विभाजित किया गया है। प्रथम एवं द्वितीय खंड में ऐतिहासिक रासो अने पद्यो- पर्यालोचन' एवं मुख्य पाट परंपरा' पृष्ठ संख्या-१ से १३४ तक वर्णित है। तृतीय खंड में गौण परंपरा' पृष्ठ संख्या-१३४ से १४८ तक वर्णित है। चतुर्थ खंड में 'धर्मप्रेमी श्रावकोना सुकृत्यो अने सलोको' पृष्ठ संख्या-१४९ से २७८ तक दिया है। पंचम खंड में 'अचलगच्छीय गुर्वावली तथा स्तवनो' पृष्ठ संख्या-२७९ से ४०० तक वर्णित है। छठे खंड में चैत्य परिपाटी केवलनाणी अने अन्य रचनाओ पृष्ठ संख्या४०१ से ४६२ तक दिया गया है। सातवें खंड में अन्य गच्छोनी रचनाओ' इस विषय के अंतर्गत महत्त्वपूर्ण ११ परिशिष्टों में विद्वानों की रचनावली तथा पट्टावली का वर्णन पृष्ठ संख्या-४६३ से ५५५ तक किया गया है। अचलगच्छ के इतिहास आलोकित करनेवाले काव्य, स्तुति, कवित्त, वधावो, पूजा, तीर्थमाला, चैत्यपरिपाटी व बृहत् चैत्यवंदनों का समावेश किया गया हैं।
अंत में लिखा है कि-“साठ वर्षों के अथक परिश्रम के परिणामस्वरूप, १००० से अधिक लोगों के सहयोग से, ५० से अधिक ज्ञानभंडारो में से प्राप्त ४००० हस्तलिखित प्रतों के आधार पर अचलगच्छ के ९०० वर्षों के इतिहास को अमूल्य-अलौकिक ३०० से भी अधिक ऐतिहासिक कृतियों का अद्भुत संग्रह याने प्रस्तुत पुस्तक “रास संग्रह।”
इस पुस्तक की छपाई बहुत सुंदर ढंग से की गई है। आवरण भी कृति के अनुरूप बहुत ही आकर्षक बनाया गया है। ग्रंथ में विषयानुक्रमणिका के साथ अनेक प्रकार के परिशिष्टों में अन्य कई महत्त्वपूर्ण सूचनाओं को संकलित करने के कारण प्रकाशन बहूपयोगी सिद्ध होता है।
इस पुस्तक के माध्यम से अनेक महान कृतियों की प्राप्ति हुई है। संघ, विद्वद्वर्ग तथा जिज्ञासुजन इस प्रकार के उत्तम प्रकाशन से लाभान्वित होंगे। इस प्रकार विद्वद्वर्यों की सर्जनयात्रा जारी रहे ऐसी शुभेच्छा है।
अन्ततः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि प्रस्तुत प्रकाशन जैन साहित्य के जिज्ञासुओं को प्रतिबोधित करता रहेगा। इस कार्य की सादर अनुमोदना के साथ कोटिशः वंदन।
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