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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR February-2019 तीरथ विमलाचल वडउ, नदीय मांहि सुरसिंधु जगगुरु । तिम देवन मइ जिन वडउ, जगजीवन जगबंधु जगगुरु पहिलउ० ॥६॥ चरण कमल जिनवर तणा, सरण करउ सहु कोइ जगगुरु । रत्ननिधान इसु कहइ, भवि भवि ज्युं सुख होइ जगगुरु पहिलउ० ॥७॥ ॥ इति प्रथम मंगल गीतं ॥१॥ द्वितीय मंगल गीत (राग-गउडी) बीजउ मंगल मनि ध्याईजइ, सिद्ध अलेष अरूपजी । अजर अमर मन वचन अगोचर, झिगमिग ज्योतिसरूपजी१४ बीजउ० ॥१॥ आठ करमना कंद निकंदी, पुहता मुगति मझारइजी। न्यान दंसण समकित सुख वीरज, पंचानंतक धारइजी बीजउ० ॥२॥ सर्व१६ जीवनइ भागि अनंतइ, जेहनउ छइ परिमाणजी। निराकार निरंजण निरुपम, गुण इगतीस- निहाणजी बीजउ० ॥३॥ सिद्ध नी अवगाहन उत्कृष्ट ९, तिन्नि सया तेत्रीसजी। धनुष त्रिभाग अछइ परिपूरण, एम कहइ जगदीसजी बीजउ० ॥४॥ अक्षय अव्यय नित अकलंकित, सिद्ध सरण करीजइजी। पाठक रत्ननिधान कहइ२१ इम, सिवसुख लील वरीजइजी२२ बीजउ० ॥५॥ ॥ इति द्वितीय मंगल गीतं ॥२॥ तृतीय मंगल गीत (राग-केदारो) समता रस भरि झीलता रे, पंच महाव्रत धार । सुमति गुपति नित साचवइ रे, न्यान तणा भंडार रे भवियां वंदं धन अणगार, ए२३ त्रीजउ मंगल सार रे, भवियां० ॥आंकणी।। पांचे इंद्री२४ वसि करी रे, वरजइ पंच प्रमाद। बारे२५ भेदे तप तपइरे, न धरइ मनि विखवाद रे भवियां ॥२॥ ९. तीरथि, १०. नदी, ११. सरणि, १२. इस्युं, १३. अरूपीजी, १४. ज्योतिसरूपीजी, १५. दरसण, १६. सरव, १७. परमाणजी, १८. इकतीस, १९. उतकृष्टी, २०. सिद्धह, २१. कह, २२. विरीजइजी 'अ', २३. एतउ, २४. इंद्रीय, २५. बारह, ॥१॥ For Private and Personal Use Only
SR No.525343
Book TitleShrutsagar 2019 02 Volume 05 Issue 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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