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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 16 श्रुतसागर फरवरी-२०१९ वसति पात्र आहार ना रे, दूषण बइतालीस। जे टालइ पालइ क्रिया रे, दिन प्रति विसूयावीसरे भवियां० ॥३॥ धरम पंथ उपदेसता रे, बोहइ भवियण वृंद। विचरइ गामागर पुरइं रे, जंगम सुरतरु कंद रे भवियां० ॥४॥ त्रिकरण सुद्धइ समरिइ रे, जुगवर जंबुसामि । प्रभव सिज्जंभव गणधरू रे, नवनिधि हुइ जसु नामि रे भवियां० ॥५॥ थूलभद्र मुनि जगि जयउ रे, दुक्कर दुक्कर कार। जिनसासनि२८ उन्नतकरू२९ रे, वयरसामि गणधार रे भवियां० ॥६॥ जीवदया प्रतिपालता रे, परघल पुण्यनिधान । भगति धरी गुण एहना रे, पभणइ रत्ननिधान रे भवियां० ॥७॥ ॥ इति तृतीय मंगल गीतं ॥३॥ चतुर्थ मंगल गीत (राग-धन्यासिरी) धरम खरउ जिनवर तणउ, तुम्ह१ करउ चतुर चित लाई रे। अविहड संबल जीवनइ, नित ए परलोक सखाई रे धरम० ॥१॥ भाई हो, दशे२ दृष्टांते दोहिलउ, मानव भव आलि म हारउ रे। मन मरकट जिम चंचलू, चपलाई करतउ वारउ रे धरम० ॥२॥ निज स्वारथि५ सहूइ सगउ, पणि साथि न कोई आवइ रे। एकलडउ ए जीवडउ, गति आपकमाई जावइ२६ रे धरम० ॥३॥ राजरिद्धि रमणी तणउ, जिउ गरव करीजइ केहा रे। राचीनइ वलि विरचितां, ए झटकि दिखाडइ छेहा रे धरम० ॥४॥ कामभोग रस वाहिया, जिउ करमपासि आलूझइ रे। जिउं माखी खेलई खली, भाई आगलि विपति न सूझइ रे तनु धन जोवन कारिमउ, भाई जिम संध्या नो वानो रे। मूरख भोला प्राणीया, कहि कीजइ केम गुमानो रे धरम०॥६॥ २६. विसवीस, २७. जंबूस्वामि, २८. जिणसासण, २९. उन्नतिकरु, ३०. तेहना, ३१. तुम्हि, ३२. करहु, ३३. दस, ३४. चंचलो, ३५. सवारथ, ३६. जावेइ, ३७. विरचता, ३८. वाहियउ, धरम० ॥५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.525343
Book TitleShrutsagar 2019 02 Volume 05 Issue 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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