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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 14 श्रुतसागर फरवरी-२०१९ आपके शिष्य श्री रत्नसुंदरजी महाराज रचित स्तवनादि भी प्राप्त होते हैं। ___आपकी बीस से अधिक रचनाओं की प्रतिलिपि मेरे पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरिजी महाराज के संग्रह में है। प्रति परिचय - प्रस्तुत प्रति की दो भिन्न प्रतिलिपियाँ राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान जोधपुर से महेन्द्रसिंहजी भंसाली (जोधपुर-जैसलमेर) के सहयोग से साभार प्राप्त हुई है। __ आदर्श 'अ' संज्ञक प्रति गोटका संख्या २९०६३ की पत्र संख्या २२२ की दोनों तरफ लिखित है। यह प्रति वि. सं. १६६३ के नूतनवर्ष अर्थात् कार्तिक सुदि प्रतिपदा के दिन लिखित है। प्रतिलेखक ने प्रति के अंत में स्वयं के नाम का निर्देश नहीं किया है। परंतु गोटका में लिखी गई शेष रचनाएँ अनेक खरतरगच्छीय मुनिवरों द्वारा लिखित हैं। प्रति जीर्ण है। अक्षर पुरुषार्थ से पठनीय है। यह कृति रचना के समीपवर्ति काल में लिखित है। पाठांतर हेतु इसी प्रतिष्ठान के गोटका संख्या ३०३६७ की पत्र संख्या ३०९ आ से ३११ अ तक सुंदर अक्षरों में लिखित पत्र से लिए गए हैं। प्रथम मंगल गीत (राग-धन्यासिरी) O॥ पहिलउ मंगल जांणीइजी', अरिगंजण अरिहंत जगगुरु । नित परभातई पूजिइ', भयभंजण भगवंत जगगुरु पहिलउ० ॥१॥ अमर भमर गण जेहना, सेवइ पय अरिविंद जगगुरु । छत्रत्रय सिरि सोहता, चामर ढालइ इंद जगगुरु पहिलउ० ॥२॥ समोसरण सिंहासनइं, बइसी जिन हितकाजी जगगुरु । दियइ धरम नी देसना, बोहइ परषद बार जगगुरु पहिलउ० ॥३॥ च्यारि तीस अतिसय भला, वचन तणा पइंतीस जगगुरु । ए अद्भुत रिधि पेखतां, पूजइ आस जगीस जगगुरु । पहिलउ० ॥४॥ भवसायर तारण तरी, न धरइ दोष अढार जगगुरु । लोक अलोक प्रकासतउ, केवलन्यान उदार जगगुरु पहिलउ० ॥५॥ १. जाणियइजी, २. पूजियइ, ३. पाय, ४. अरविंद, ५. जन, ६. हितकार, ७. परिषद, ८. अतिसइ 'अ', For Private and Personal Use Only
SR No.525343
Book TitleShrutsagar 2019 02 Volume 05 Issue 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2019
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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