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SHRUTSAGAR
19
November-2018
प्रतिक्रमण, पौषध अने जापमां मग्न रही दुर्लभ एवा मानवजन्मने सफल करवो जोईये ।
ज्ञानरूपी दीवडो, कायानी वाट, समकितरूपी ज्योतनी वात करीने कर्ताए आध्यात्मिक दीपावलीनी बहु ज सुंदर वात जणावी छे । साथे-साथे भावपूजानुं वर्णन करतां कहे छे के दयारूपी जलथी स्नान, शीलरूपी सुंगधित चंदनथी विलेपन, दानशील - -तप-भावनारूपी अक्षत, धीरजरूपी धूप अने तपरूपी अगर उखेववुं जोईये। दयाना दहीवडा, क्षमाना खाजा, नवतत्त्वना नैवेद्य करी जिनेश्वरनी पूजा करवी जोईये ।
प्रस्तुत कृतिना गाथा क्रमांक प्रतिलेखक द्वारा न अपायेल होई अमे आपेल छे. आ कृति अन्यकर्तृक तथा अज्ञात कर्तृक पण मळे छे, तेमां गाथा परिमाण ३२, ३९ अने ४३ एम भिन्न-भिन्न प्राप्त थाय छे।
कर्ता परिचयः
श्री समयसुंदर गणि जैन परंपराना एक समर्थ कवि छे । रास, चोपाई, प्रबंध गीत, सज्झाय, स्तवनादि मळी कुल ५०० थी अधिक तेमनी रचनाओ जोवा मळे छे। देशी उपरांत नानी-मोटी संस्कृत - प्राकृतादि भाषाबद्ध रचनाओ पण ५० थी अधिक छे। कविनी रचनाओमां कविनां पांडित्य, भाषाप्रभुत्व, बहुश्रुतता उपरांत विशिष्ट कवित्वनां दर्शन थाय छे।
समयसुंदरनो जन्म राजस्थानना सांचोरमां थयो हतो एवो उल्लेख 'सीताराम चोपाई' मांथी मळे छे। एमना जन्मवर्ष अंगे जे अनुमानो थयां छे, तेमां श्रीमोहनलाल दलीचंद देसाईनो अभिप्राय समुचित जणाय छे। तेओ सं. १६२० थी १७०० एटले के ई.स.१५६४ थी ई.स.१६४४ सुधीना गाळाने कविनो जीवनकाळ गणावे छे।
समयसुंदर पोताने खरतरगच्छना अनुयायी तरीके ओळखावे छे। नेमिचंद्रसूरिथी आरंभी सकलचंद्रगणि सुधीनी गुरुपरंपरा कविए 'अष्टलक्षी अर्थरत्नावली' नामना पोताना संस्कृत ग्रंथनी प्रशस्तिमां गणावी छे।
समयसुंदरनी दीर्घ रचनाओमांथी केटलीक नोंधनीय कृतिओनो अहीं उल्लेख कर्यो छे। जैन कवि समयसुंदर सत्तरमा शतकना एक उत्तम गीतकार हता । समयसुंदरनी गीतरचनाओ संख्यादृष्टिए घणी छे । एटलुंज नहि, गुणवत्तानी दृष्टि पण केटलीक तो अजोड छे । एमनां गीतो गुजरात राजस्थानना जैन समाजमां खूब प्रचार पाम्यां। राजस्थानमां तेमनी गीतरचनाओना संदर्भमां एक लोकोक्ति प्रचलित छे। “समयसुंदररा गीतडां, कुंभे राणेरा भींतरां” कुंभा राणाए करावेल स्थापत्यो अद्भुत छे तेम समयसुंदरनां गीतो पण ध्यानाकर्षक छे।
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